बैटरी क्या होता है
बैटरी किसे कहते है बैटरी कितने प्रकार की होती है
What Is Battery In Hindi ?
बैटरी किसे कहते है: इलेक्ट्रिक बैटरी एक ऐसी डिवाइस होती है जो दो या दो से अधिक इलेक्ट्रो केमिकल सेल से मिलाकर बनी हो. बैटरी का इस्तेमाल आपको बहुत से उपकरण में देखने को मिलता है अगर आपके घर में एक इनवर्टर है तो उस पर भी एक आपको बैटरी देखने को मिलेगी. इसके अलावा आपके स्मार्टफोन में, कोई भी इलेक्ट्रिक कार, मोटरसाइकिल इत्यादि में बैटरी का इस्तेमाल किया जाता है. जब बैटरी पावर सप्लाई देती है तो इसका पॉजिटिव टर्मिनल क्या थोड़ा होता है. और नेगेटिव टर्मिनल एनोड होता है.
बैटरी किसे कहते है
जैसा कि हम सब जानते हैं बैटरी एक DC पावर सप्लाई का स्रोत है जिसकी मदद से हम कोई भी DC पावर सप्लाई से चलने वाला उपकरण चला सकते हैं. अगर हमें बैटरी से AC सप्लाई से चलने वाले उपकरण को चलाना है तो इसके लिए हमें एक इनवर्टर लगाना पड़ता है जो कि बैटरी से आने वाली DC सप्लाई को AC सप्लाई में बदलेगा और इससे हम AC उपकरण को चला सकते हैं. बैटरी कई प्रकार की होती है लेकिन हम ज्यादातर है . लेड एसिड बैटरी का इस्तेमाल करते हैं हमारे घर के इनवर्टर पर इस्तेमाल होने वाली एक सामान्य बैटरी भी लेड एसिड बैटरी होती है.
बैटरी किसे कहते है
लेड एसिड बैटरी
लेड एसिड बैटरी का आविष्कार 1859 में फ्रेंच के एक वैज्ञानिक Gaston Planté ने किया था. जिसे रिचार्ज कर सकते थे. लेड एसिड बैटरी एक सेकेंडरी सेल टाइप की होती है. जिसे हम बार-बार इस्तेमाल करके रिचार्ज कर सकते हैं. इसीलिए इसका इस्तेमाल काफी ज्यादा किया जाता है और इसका इस्तेमाल इलेक्ट्रिकल इंडस्ट्रीज से लेकर ऑटोमोबाइल इंडस्ट्री में भी किया जाता है. जितने भी वाहन होते हैं उनमें लेड एसिड बैटरी का इस्तेमाल किया जाता है.
लेड एसिड बैटरी के भाग
एक लेड एसिड बैटरी दिखने में आपको बिल्कुल साधारण दिखती है लेकिन यह कई कॉन्पोनेंट से मिलकर बनी होती है.
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- कंटेनर(Container)
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- प्लेटे (Plates)
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- इलेक्ट्रोलाइट (Electrolyte)
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- सेपरेटर (Separator)
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- सैल कवर ( Cell Cover )
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- सैल कनेक्ट (Cell Connector)
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- सीलिंग कंपाउंड (Scaling Compound)
कंटेनर(Container)
बैटरी के अंदर लगी प्लेटें सेपरेटर इलेक्ट्रोलाइट आदि को रखने के लिए एक कंटेनर का इस्तेमाल किया जाता है बैटरी के चारों तरफ का भाग बैटरी का कंटेनर होता है. कंटेनर का नीचे का भाग कुछ ऊपर उठा हुआ होता है इस उठे हुए भाग में प्लेटें फिट होती है और इस भाग को RIB कहते हैं.RIB मैं जो खाली स्थान रहता है उसे MUD Space कहते हैं. प्लेटो से अलग होने वाला क्रियाशील पदार्थ नीचे गिर कर इस MUD Space में इकट्ठा हो जाता है जिससे की प्लेटें आपस में शार्ट सर्किट नहीं होती.
प्लेटे (Plates)
बैटरी में दो प्रकार की प्लेटें लगाई जाती है पॉजिटिव प्लेट शीशे की जालीदार लेट होती है जिस पर रेड लेड पर ऑक्साइड (Red PbO2) की परत चढ़ी होती है जबकि नेगेटिव प्लेट पर लेड ऑक्साइड ( PbO2) की परत चढ़ी होती है दोनों प्लेटों को हल्के गंधक के अमल (Dil H2SO4 ) में रखा जाता है इन दोनों प्लेटों में से नेगेटिव प्लेट की संख्या पॉजिटिव प्लेट किस संख्या से 1 अधिक होती है. अगर 12 पॉजिटिव लेटे हैं तो वहां पर तेरा नेगेटिव प्लेटें होंगी.
इलेक्ट्रोलाइट (Electrolyte)
लेड एसिड बैटरी में इलेक्ट्रोलाइट के रूप में हल्के गंधक के तेजाब का इस्तेमाल किया जाता है. इलेक्ट्रोलाइट में पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों प्लेटें डूबा कर रखी जाती है .और इलेक्ट्रोलाइट ही प्लेटों से रासायनिक क्रिया करा कर विद्युत पैदा करता है. इलेक्ट्रोलाइट सल्फ्यूरिक एसिड और शुद्ध पानी का मिश्रण होता है.
सेपरेटर (Separator)
जैसा की हमने बताया कंटेनर में पॉजिटिव और नेगेटिव दोनों प्लेटें इलेक्ट्रोलाइट के खून में डूबा कर रखी जाती है. इन दोनों प्लेटों को आपस में मिलने से बचाने के लिए किसी कुचालक पदार्थ का इस्तेमाल किया जाता है .जिसे Seprator कहते हैं. लकड़ी यासख्त रबड़ को बैटरी में Sepratorके रूप में इस्तेमाल किया जाता है.
सैल कवर ( Cell Cover )
सभी सेल को ढकने के लिए एक कवर का इस्तेमाल किया जाता है जिसे सेल कवर कहते हैं यह ठोस रबड़ से बना होता है. सेल कवर इलेक्ट्रोलाइट प्लेटो और सपरेटर को ढककर सुरक्षित रखने के लिए लगाया जाता है.सेल कवर पर ही दोनों पॉजिटिव और नेगेटिव टर्मिनल को लगाया जाता है. आपको अक्सर बैटरी पर दो टर्मिनल देखने को मिलते हैं यह दोनों टर्मिनल सेल कवर के ऊपर ही लगे होते हैं.
सैल कनेक्ट (Cell Connector)
एक सामान्य लेड एसिड बैटरी में छह सेल होते हैं जिन्हें आपस में जोड़ने के लिए सेल कलेक्टर का इस्तेमाल किया जाता है. हर एक सेल 2 वोल्ट की सप्लाई देता है और सभी सेल को मिलाने के बाद में पूरी बैटरी 12 वोल्ट की सप्लाई देती है.
सीलिंग कंपाउंड (Scaling Compound)
बैटरी के कंटेनर को लीकेज प्रूफ बनाने के लिए इसमें कंपाउंड रबड़ को पिघलाकर कंटेनर के साथ में सेल कवर को सील बंद करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है.
यह बैटरी के कुछ महत्वपूर्ण भाग होते हैं जिन्हें मिलाकर बैटरी बनाई जाती है. जैसा कि आप जानते हैं .लेड एसिड बैटरी रिचार्जेबल होती है जिसे हम बार-बार चार्ज कर सकते हैं .लेकिन हर एक बैटरी एक जैसे ही चार्ज नहीं की जाती बैटरी को चार्ज करने के कुछ तरीके होते हैं. जिसके बारे में नीचे आप को विस्तार पूर्वक बताया गया है.
पहली चार्जिंग : जब बैटरी को बनाया जाता है तो बैटरी को बनने के तुरंत बाद जो चार्जिंग की जाती है उसे पहली चार्जिंग कहते हैं. इस चार्जिंग में बैटरी को कम करंट देकर चार्ज किया जाता है जिससे बैटरी धीरे धीरे चार्ज होती है.
साधारण चार्जिंग : पहली चार्जिंग करने के बाद में अगर बैटरी में किसी प्रकार की कोई भी ख़राबी नहीं आती तो फिर उसे साधारण चार्जिंग दर से चार्ज किया जाता है और ज्यादातर बैटरियां इसी प्रकार चार्ज होती है.
बूस्टिंग चार्जिंग : जब किसी बैटरी की आवश्यकता शीघ्रता से हो तो उससे बूस्टिंग चार्जिंग द्वारा चार्ज किया जाता है इसमें बैटरी को ज्यादा करंट देकर जल्दी चार्ज किया जाता है. मान लो अगर आप के घर में बिजली कम समय के लिए आती है और आपको इनवर्टर की बैटरी जल्दी चार्ज करनी हो ताकि कम समय में चार्ज हो कर वह लंबे समय तक चल सके. तो इसके लिए बूस्टिंग चार्जिंग की आवश्यकता होती है जो कि बैटरी को बहुत जल्दी चार्ज कर देता है.
ट्रिकल चार्जिंग : ट्रिकल चार्जिंग में बैटरी को कम कर्रेंट देकर चार्जिंग किया जाता है. अगर आपके घर में बिजली सारा दिन रहती है सिर्फ कुछ समय के लिए ही जाती है तो इसके लिए आप के इनवर्टर की बैटरी को बहुत धीरे धीरे चार्ज किया जाता है ताकि आपकी बैटरी खराब ना हो. ट्रिकल चार्जिंग में बैटरी को इतना कम कर दिया जाता है कि इसमें से किसी प्रकार की कोई भी गैस नहीं निकलती. इस प्रकार की चार्जिंग का इस्तेमाल ऐसी जगह पर किया जाता है जहां पर बिजली कुछ समय के लिए ही जाती है.
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