Tulsi Vivah -तुलसी विवाह

तुलसी विवाह (Tulsi Vivah)

दिवाली के सात दिन बाद देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु विश्राम से जागते हैं और सृष्टि का कार्य-भार देखते हैं। सभी मंगल कार्य इस एकादशी से शुरू होते है। इस एकादशी में ही तुलसी विवाह भी किया जाता है।  कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को देवउठनी एकादशी कहा जाता है।

 

देवउठनी एकादशी के व्रत में क्या करें,
देवउठनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को जगाते समय दीपक अवश्य जलाना चाहिए।

 

धार्मिक शास्त्रों में भगवान शालिग्राम को श्री नारायण का साक्षात् रुप माना गया हैं। कहते है कि भगवान शालिग्राम का पूजन माता तुलसी के बिना अधूरा होता है और भगवान शालिग्राम और माता तुलसी का विवाह कराने से व्यक्ति के जीवन में सारे कलह, दुःख और रोग इत्यादि दूर हो जाते हैं। तुलसी शालिग्राम विवाह करवाने से कन्यादान के जितना ही पुण्य प्राप्त होता है। श्री शालिग्राम जी का तुलसी युक्त चरणामृत पीने से भयंकर विष का जहर भी समाप्त हो जाता है और साथ ही चरणामृत का पान करने वाला व्यक्ति समस्त पापों से मुक्त होकर परलोक चला जाता है।

शालिग्राम की पूजा – Tulasi vivah

 

कहते है जिस घर में भगवान शालिग्राम विराजमान हो वह घर सभी तीर्थ में से सर्वश्रेष्ठ होता है। जहां शालिग्राम का पूजन होता है वहां वास्तु दोष स्वतः ही समाप्त हो जाता है। भगवान शालिग्राम जी को स्नान कराकर और चन्दन लगाकर तुलसी अर्पित करना और फिर चरणामृत ग्रहण करने मन, धन व तन की सारी कमजोरियां दूर हो जाती हैं। घर में भगवान शालिग्राम की पूजा करने से भगवान विष्णु-लक्ष्मी बहुत प्रसन्न होते हैं। शालिग्राम शिला का जल समस्त यज्ञों और संपूर्ण तीर्थों में स्नान के समान फल देता है और जो भक्त शालिग्राम शिला के जल से अभिषेक करता है वह संपूर्ण दान के पुण्य का उत्तराधिकारी बन जाता है।

शालिग्राम पत्थर की कहानी – Tulasi vivah

 

नेपाल की गंडकी नदी में पाए जाने वाले काले रंग के अंडाकार पत्थर को शालिग्राम कहते हैं। लोग इस पत्थर को अपने घर और मन्दिर में पूजते हैं। इस पत्थर के अंदर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं। वर्तमान में गंडकी नदी में इनकी संख्या 80 से लेकर 124 तक है। शालिग्राम एक मूल्यवान पत्थर है। शालिग्राम के भीतर अल्प मात्रा में स्वर्ण होने के कारण इसके चोरी होने का भय अधिक रहता है।

तुलसी-शालिग्राम विवाह – – Tulasi vivah

 

कार्तिक में स्नान करने वाली स्त्रियां एकादशी को भगवान विष्णु के रूप शालिग्राम एवं विष्णुप्रिया तुलसी का विवाह संपन्न करवाती हैं।पूर्ण रीति-रिवाज़ से तुलसी वृक्ष से शालिग्राम के फेरे एक सुन्दर मंडप के नीचे किए जाते हैं।विवाह में कई गीत,भजन व तुलसी नामाष्टक सहित विष्णुसहस्त्रनाम के पाठ किए जाने का विधान है।शास्त्रों के अनुसार तुलसी-शालिग्राम विवाह कराने से पुण्य की प्राप्ति होती है,दांपत्य जीवन में प्रेम बना रहता है। कार्तिक मास में तुलसी रुपी दान से बढ़कर कोई दान नहीं हैं। पृथ्वी लोक में देवी तुलसी आठ नामों वृंदावनी, वृंदा, विश्वपूजिता, विश्वपावनी, पुष्पसारा, नंदिनी, कृष्णजीवनी और तुलसी नाम से प्रसिद्ध हुईं हैं। श्री हरि के भोग में तुलसी दल का होना अनिवार्य है,भगवान की माला और चरणों में तुलसी चढ़ाई जाती है।

असुर शंखचूड़ की पत्नी थी तुलसी

 

शिवपुराण के अनुसार दैत्यों के राजा असुर शंखचूड़ की पत्नी का नाम तुलसी था। शंखचूड़ की वजह से सभी देवताओं के लिए परेशानियां बढ़ गई थीं। जब तक उसकी पत्नी तुलसी का पतिव्रत भंग नहीं होता, तब तक सभी देवता मिलकर भी शंखचूड़ का वध नहीं कर सकते थे। जब शंखचूड़ का अत्याचार बढ़ने लगा तो सभी देवता और ऋषि भगवान शिव के पास पहुंचे। शिवजी की मदद के लिए भगवान विष्णु ने छल से तुलसी का पतिव्रत भंग कर किया और शिवजी ने शंखचूड़ का वध कर दिया। जब ये बात तुलसी को मालूम हुई तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर बन जाने का शाप दिया। विष्णुजी ने तुलसी का शाप स्वीकार किया और कहा कि अब से गंडकी नदी और तुलसी के पौधे के रूप में तुम्हारी पूजा होगी। मेरी पूजा में भी तुलसी की पत्तियां रखना अनिवार्य होगा।

गंडकी नदी में मिलते हैं शालिग्राम

 

नेपाल में बहने वाली गंडकी नदी में एक विशेष प्रकार के काले पत्थर मिलते हैं, जिन पर चक्र, गदा आदि के निशान होते हैं। यही पत्थर भगवान विष्णु का स्वरूप माने गए हैं। इन्हें शालिग्राम कहा जाता है। शिवपुराण में भगवान विष्णु ने खुद ही गंडकी नदी में अपना वास बताया था और कहा था कि गंडकी नदी के तट पर मेरा वास होगा। नदी में रहने वाले करोड़ों कीड़े अपने तीखे दांतों से काट-काटकर इन पत्थरों पर मेरे चक्र का चिह्न बनाएंगे और इसी कारण ये पत्थर मेरा स्वरूप मान कर पूजे जाएंगे।

शालिग्राम और तुलसी विवाह की है परंपरा

 

विष्णुजी और तुलसी से जुड़ी एक और मान्यता प्रचलित है। इस मान्यता के अनुसार प्राचीन समय में तुलसी ने भगवान विष्णु को पति रूप में पाने के लिए कई सालों तक तपस्या की थी, इसके फलस्वरूप भगवान विष्णुे ने उसे विवाह करने का वरदान दिया था। जिसे देवप्रबोधिनी एकादशी पर पूरा किया जाता है। देवप्रबोधिनी एकादशी पर शालिग्राम शिला और तुलसी के पौधा का विवाह करवाने की परंपरा पुराने समय से चली आ रही है।

 

हिन्दू पुराणों में तुलसी जी को “विष्णु प्रिया” कहा गया है। विष्णु जी की पूजा में तुलसी दल यानि तुलसी के पत्तों का प्रयोग अनिवार्य माना जाता है। इसके बिना विष्णु जी की पूजा अधूरी मानी जाती है। दोनों को हिन्दू धर्म में पति-पत्नी के रूप में देखा जाता है। मान्यतानुसार कार्तिक शुक्ल एकादशी के दिन तुलसी जी और विष्णु जी का विवाह (Tulsi Vivah) कराने की प्रथा है।

 

तुलसी विवाह में तुलसी के पौधे और विष्णु जी की मूर्ति या शालिग्राम पाषाण का पूर्ण वैदिक रूप से विवाह कराया जाता है।

तुलसी विवाह की विधि (Tulsi Vivah Vidhi)

 

पद्म पुराण के अनुसार तुलसी विवाह का कार्य एकादशी को करना शुभ होता है। तुलसी विवाह विधि (Tulsi Vivah Vidhi) बेहद सरल है और इसे जातक चाहें तो अपने आप भी कर सकते हैं।

 

तुलसी विवाह संपन्न कराने के लिए एकादशी के दिन व्रत करना चाहिए और तुलसी जी के साथ विष्णु जी की मूर्ति घर में स्थापित करनी चाहिए। तुलसी के पौधे और विष्णु जी की मूर्ति को पीले वस्त्रों से सजाना चाहिए। पीला विष्णु जी की प्रिय रंग है।

 

तुलसी विवाह के लिए तुलसी के पौधे को सजाकर उसके चारों तरफ गन्ने का मंडप बनाना चाहिए। तुलसी जी के पौधे पर चुनरी या ओढ़नी चढ़ानी चाहिए। इसके बाद जिस प्रकार एक विवाह के रिवाज होते हैं उसी तरह तुलसी विवाह की भी रस्में निभानी चाहिए।

 

अगर चाहें तो पंडित या ब्राह्मण की सहायता से भी विधिवत रूप से तुलसी विवाह संपन्न कराया जा सकता है अन्यथा मंत्रोच्चारण (ऊं तुलस्यै नम:) के साथ स्वयं भी तुलसी विवाह किया जा सकता है।

 

द्वादशी के दिन पुन: तुलसी जी और विष्णु जी की पूजा कर और व्रत का पारण करना चाहिए। भोजन के पश्चात तुलसी के स्वत: गलकर या टूटकर गिरे हुए पत्तों को खाना शुभ होता है। इस दिन गन्ना, आंवला और बेर का फल खाने से जातक के सभी पाप नष्ट हो जाते हैं।

 

नोट: शालिग्राम मूर्ति यानि विष्णु जी की काले पत्थर की मूर्ति मिलना दुर्लभ होता है। इसके ना मिलने पर जातक विष्णु जी की मूर्ति या तस्वीर को भी इस्तेमाल कर सकते हैं।

तुलसी विवाह का लाभ – Tulsi vivah

 

यदि किसी ​विवाहित जोड़े के रिश्ते में कोई समस्या आ रही है तो उन लोगों को तुलसी विवाह का आयोजन करना चाहिए। ऐसा करने से उनके दाम्पत्य जीवन में आ रही समस्याओं का निदान हो जाता है। जो लोग शादी के लिए रिश्ते देख रहे होते हैं, उनकी बात पक्की होने की संभावना बढ़ जाती है।

कैसे करें घर में तुलसी जी का विवाह

 

*शाम के समय सारा परिवार इसी तरह तैयार हो जैसे विवाह समारोह के लिए होते हैं।
* तुलसी का पौधा एक पटिये पर आंगन, छत या पूजा घर में बिलकुल बीच में रखें।
* तुलसी के गमले के ऊपर गन्ने का मंडप सजाएं।
* तुलसी देवी पर समस्त सुहाग सामग्री के साथ लाल चुनरी चढ़ाएं।
* गमले में सालिग्राम जी रखें।
* सालिग्राम जी पर चावल नहीं चढ़ते हैं। उन पर तिल चढ़ाई जा सकती है।
* तुलसी और सालिग्राम जी पर दूध में भीगी हल्दी लगाएं।
* गन्ने के मंडप पर भी हल्दी का लेप करें और उसकी पूजन करें।

 

* अगर हिंदू धर्म में विवाह के समय बोला जाने वाला मंगलाष्टक आता है तो वह अवश्य करें।
* देव प्रबोधिनी एकादशी से कुछ वस्तुएं खाना आरंभ किया जाता है। अत: भाजी, मूली़ बेर और आंवला जैसी सामग्री बाजार में पूजन में चढ़ाने के लिए मिलती है वह लेकर आएं।
* कपूर से आरती करें। (नमो नमो तुलजा महारानी, नमो नमो हरि की पटरानी)
* प्रसाद चढ़ाएं।
* 11 बार तुलसी जी की परिक्रमा करें।
* प्रसाद को मुख्य आहार के साथ ग्रहण करें।
* प्रसाद वितरण अवश्य करें।
* पूजा समाप्ति पर घर के सभी सदस्य चारों तरफ से पटिए को उठा कर भगवान विष्णु से जागने का आह्वान करें-

 

उठो देव सांवरा, भाजी, बोर आंवला, गन्ना की झोपड़ी में, शंकर जी की यात्रा।
इस लोक आह्वान का भोला सा भावार्थ है – हे सांवले सलोने देव, भाजी, बोर, आंवला चढ़ाने के साथ हम चाहते हैं कि आप जाग्रत हों, सृष्टि का कार्यभार संभालें और शंकर जी को पुन: अपनी यात्रा की अनुमति दें।

तुलसी स्तोत्र पढ़ने का महत्व (Importance of Tulsi Strotram) – Tulsi vivah

 

तुलसी जी की पूजा में कई मंत्रों के साथ तुलसी स्तोत्र का भी पाठ किया जाता है। पद्मपुराण के अनुसार द्वादशी की रात को जागरण करते हुए तुलसी स्तोत्र को पढ़ना चाहिए। इस दिन भगवान विष्णु जातक के सभी अपराध क्षमा कर देते हैं। तुलसी स्त्रोत को सुनने से भी समान पुण्य मिलता है। तुलसी स्त्रोत निम्न हैं-

 

जगद्धात्रि नमस्तुभ्यं विष्णोश्च प्रियवल्लभे।
यतो ब्रह्मादयो देवाः सृष्टिस्थित्यन्तकारिणः ॥1॥

 

नमस्तुलसि कल्याणि नमो विष्णुप्रिये शुभे।
नमो मोक्षप्रदे देवि नमः सम्पत्प्रदायिके ॥2॥

 

तुलसी पातु मां नित्यं सर्वापद्भ्योऽपि सर्वदा ।
कीर्तितापि स्मृता वापि पवित्रयति मानवम् ॥3॥

 

नमामि शिरसा देवीं तुलसीं विलसत्तनुम् ।
यां दृष्ट्वा पापिनो मर्त्या मुच्यन्ते सर्वकिल्बिषात् ॥4॥

 

तुलस्या रक्षितं सर्वं जगदेतच्चराचरम् ।
या विनिहन्ति पापानि दृष्ट्वा वा पापिभिर्नरैः ॥5॥

 

नमस्तुलस्यतितरां यस्यै बद्ध्वाजलिं कलौ ।
कलयन्ति सुखं सर्वं स्त्रियो वैश्यास्तथाऽपरे ॥6॥

 

तुलस्या नापरं किञ्चिद् दैवतं जगतीतले ।
यथा पवित्रितो लोको विष्णुसङ्गेन वैष्णवः ॥7॥

 

तुलस्याः पल्लवं विष्णोः शिरस्यारोपितं कलौ ।
आरोपयति सर्वाणि श्रेयांसि वरमस्तके ॥8॥

 

तुलस्यां सकला देवा वसन्ति सततं यतः ।
अतस्तामर्चयेल्लोके सर्वान् देवान् समर्चयन् ॥9॥

 

नमस्तुलसि सर्वज्ञे पुरुषोत्तमवल्लभे ।
पाहि मां सर्वपापेभ्यः सर्वसम्पत्प्रदायिके ॥10॥

 

इति स्तोत्रं पुरा गीतं पुण्डरीकेण धीमता ।
विष्णुमर्चयता नित्यं शोभनैस्तुलसीदलैः ॥11॥

 

तुलसी श्रीर्महालक्ष्मीर्विद्याविद्या यशस्विनी ।
धर्म्या धर्नानना देवी देवीदेवमनःप्रिया ॥12॥

 

लक्ष्मीप्रियसखी देवी द्यौर्भूमिरचला चला ।
षोडशैतानि नामानि तुलस्याः कीर्तयन्नरः ॥13॥

 

लभते सुतरां भक्तिमन्ते विष्णुपदं लभेत् ।
तुलसी भूर्महालक्ष्मीः पद्मिनी श्रीर्हरिप्रिया ॥14॥

 

तुलसि श्रीसखि शुभे पापहारिणि पुण्यदे ।
नमस्ते नारदनुते नारायणमनःप्रिये ॥15॥

 

इति श्रीपुण्डरीककृतं तुलसीस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

माथे पर कुंकू (कुमकुम) तिलक लगाने के फायदे

About Chetan Velhal

Check Also

Country Delight history price milk hindi

Country Delight Milk

  तो आज हम देखने वाले कंट्री डिलाइट दूध के बारे में पूरी जानकारी विस्तार …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *