मकर संक्रान्ति – Makar sankranti

मकर संक्रान्ति

मकर संक्रान्ति

 

ख़ुशी और समृद्धि का प्रतीक मकर संक्रांति त्यौहार सूर्य के मकर राशि में प्रवेश करने पर मनाया जाता है। भारतवर्ष के विभिन्न प्रान्तों में यह त्यौहार अलग-अलग नाम और परम्परा के अनुसार मनाया जाता है।

 

मकर संक्रान्ति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है। मकर संक्रान्ति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है। पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है।

 

मकर संक्रांति के दिन पतंग उड़ाने का भी विशेष महत्व होता है और लोग बेहद आनंद और उल्लास के साथ पतंगबाजी करते हैं। इस दिन कई स्थानों पर पतंगबाजी के बड़े-बड़े आयोजन भी किए जाते हैं।

 

यह भारतवर्ष तथा नेपाल के सभी प्रान्तों में अलग-अलग नाम व भाँति-भाँति के रीति-रिवाजों द्वारा भक्ति एवं उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है।

 

महाराष्ट्र और कर्नाटक में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रान्ति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं। तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है। लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -“तिळ गूळ घ्या आणि गोड़ गोड़ बोला” अर्थात तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो। इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बाँटती हैं।

तिल और गुड़ के लड्डू – Tilkud Recipe – Til Gud Ladoo Recipe

मकर संक्रान्ति का महत्व

 

शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है-

 

माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम।

 

स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥

 

मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी। ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है। सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रान्ति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है। इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही पड़ता है।

मकर संक्रान्ति का ऐतिहासिक महत्व

 

ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं। चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रान्ति के नाम से जाना जाता है। महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं।

मकर संक्रांति के रूप (Names of Makar Sankranti in Hindi)

 

उत्तर भारत में इसे मकर संक्रांति, पंजाब हरियाणा में लोहड़ी, असम में बिहू और दक्षिण भारत में पोंगल के नाम से जाना जाता है। इस दिन लोग खिचड़ी बनाकर भगवान सूर्यदेव को भोग लगाते हैं, जिस कारण इस पर्व को खिचड़ी के नाम से भी जाना जाता है। इस दिन सुबह- सुबह पवित्र नदी में स्नान कर तिल और गुड़ से बनी वस्तु को खाने की परंपरा है। इस पवित्र पर्व के अवसर पर पतंग उड़ाने का अलग ही महत्व है। बच्चे पतंगबाजी करके ख़ुशी और उल्लास के साथ इस त्यौहार का भरपूर लुत्फ़ उठाते हैं।

 

इस दिन सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं और गीता के अनुसार जो व्यक्ति उत्तरायण में शरीर का त्याग करता है, वह श्री कृष्ण के परम धाम में निवास करता है। इस दिन लोग मंदिर और अपने घर पर विशेष पूजा का आयोजन करते हैं। भविष्य पुराण के अनुसार इस दिन प्रयाग और गंगासागर में स्नान का बड़ा महत्व बताया गया है, जिस कारण इस तिथि में स्नान एवं दान का करना बड़ा पुण्यदायी माना गया है।

मकर संक्रांति व्रत विधि (Makar Sankranti Vrat Vidhi in Hindi)

 

भविष्यपुराण के अनुसार सूर्य के उत्तरायण या दक्षिणायन के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। इस व्रत में संक्रांति के पहले दिन एक बार भोजन करना चाहिए। संक्रांति के दिन तेल तथा तिल मिश्रित जल से स्नान करना चाहिए। इसके बाद सूर्य देव की स्तुति करनी चाहिए।
मान्यतानुसार इस दिन तीर्थों में या गंगा स्नान और दान करने से पुण्य प्राप्ति होती है। ऐसा करने से जातक को मोक्ष की प्राप्ति होती है। साथ ही संक्रांति के पुण्य अवसर पर अपने पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण अवश्य प्रदान करना चाहिए।

संक्रांति पूजा समय (Auspicious Timing For Pooja on Makar Sankranti )

 

संक्रांति के दिन पुण्य काल में दान देना, स्नान करना या श्राद्ध कार्य करना शुभ माना जाता है। इस साल यह शुभ मुहूर्त दोपहर 2 बजे से लेकर शाम 05 बजकर 41 मिनट तक का है। (शुभ मुहूर्त दिल्ली समयानुसार है।)

 

मकर संक्रांति पूजा मंत्र (Surya Mantra for Makar Sankranti)
मकर संक्रांति के दिन सूर्यदेव की निम्न मंत्रों से पूजा करनी चाहिए:
ऊं सूर्याय नम:
ऊं आदित्याय नम:
ऊं सप्तार्चिषे नम:
अन्य मंत्र हैं- ऋड्मण्डलाय नम: , ऊं सवित्रे नम: , ऊं वरुणाय नम: , ऊं सप्तसप्त्ये नम: , ऊं मार्तण्डाय नम: , ऊं विष्णवे नम:

 

सूर्य मंत्र: मकर संक्रांति के दिन, सूर्य मंत्र जाप किया जाना चाहिए और सूर्य की पूजा की जानी चाहिए। सूर्य मंत्र: “ओम हरेम हरेम ह्रौम्म साह सूर्य्या नमः।”

मकर संक्रांति के बारे में – Makar sankranti 10 lines in Hindi

 

1. यह त्यौहार भारत के अलग राज्यों में मनाया जाता है तथा हर राज्य में इसे अलग-2 नाम से जाना जाता है जो की निम्नलिखित है :
मकर संक्रान्ति : छत्तीसगढ़, गोआ, ओड़ीसा, हरियाणा, बिहार, झारखण्ड, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, मणिपुर, राजस्थान, सिक्किम, उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार, पश्चिम बंगाल, और जम्मू

 

ताइ पोंगल, उझवर तिरुनल : तमिलनाडु
उत्तरायण : गुजरात, उत्तराखण्ड
माघी : हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, पंजाब
भोगाली बिहु : असम
शिशुर सेंक्रात : कश्मीर घाटी
खिचड़ी : पश्चिमी बिहार
पौष संक्रान्ति : पश्चिम बंगाल
मकर संक्रमण : कर्नाटक

 

2. इस दिन भारत की सभी पवित्र नदियों में लोग स्नान करके लोग इस दिन पहला सनान पवित्र नदियों में करना ही उचित मानते है इसीलिए इस दिन का महत्त्व और भी अधिक बढ़ जाता है |

 

3. हिन्दू पुराणों की मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान् सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने जाते है लेकिन शनि मकर राशि के स्वामी है व ज्योतिष की दृष्टि से सूर्य और शनि का तालमेल असंभव व हानिकारक है इसीलिए सूर्य देव खुद शनि के पास जाते है इसीलिए यह दिन पिता पुत्र के संबंधो के बीच पारस्परिक निकटता दर्शाता है

 

4. इस दिन विश्व प्रसिद्ध कुम्भ का मेला भी इसी पवित्र महीने में हर पवित्र नदी वाले स्थानों पर मेले का आयोजन किया जाता है और दूर-2 से लोग मेले को देखने के लिए आते है |

 

5. इस दिन खाने में सबसे अधिक चावल तथा खिचड़ी सबसे लोकप्रिय माने जाते है कई राज्यों में इसे खिचड़ी का पर्व के नाम से भी जाना जाता है | कई लोग खिचड़ी को गुड़ व घी के साथ भी खाते है तथा इस त्यौहार का आनंद लेते है |

 

6. इस उत्सव को बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जाता है व इस दिन घर-2 में पतंगबाजी की जाती है कई स्थानों पर पतंगबाजी की प्रतियोगिताएं की जाती है |

 

7. इस दिन लोग अपने घर में तिल की मिठाइयां बनाते है तथा उन मिठाइयों को वह लोग अपने रिश्तेदारों, दोस्तों व सगे-सम्बन्धियों को बांटते है |

 

8. यह दिन पिता व पुत्र के बीच पारस्परिक प्रेम को दर्शाता है इसीलिए इस दिन पुत्र को अपने पिता को तिलक लगा कर स्वागत करना चाहिए तथा इस दिन की शुरुआत करनी चाहिए |

 

9. इस दिन का महत्त्व इसीलिए और भी अधिक बढ़ जाता है क्योकि इसी दिन महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपने देह को त्यागने के लिए इसी दिन को चुना था |

 

10. जिस तरह के भारत के अलग-2 राज्यों में इस पर्व का नाम अलग-2 रखा गया है और लोग इसे अपनी मान्यताओं के अनुसार ही मनाते है उसी तरह से इस पर्व पर अपनी मान्यतओं के अनुसार ही पकवान बनाये जाते है |

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