लोमड़ी और अंगूर
लोमड़ी और अंगूर की कहानी
कहानी 1. एक लोमड़ी थी, जो अगर खाने की बहुत शौकीन थी । एक बार वह अंगूरों के बाग से गुजर रही थी । चारों ओर स्वादिष्ट अंगुरों के गुच्छे लटक रहे थे । मगर वे सभी लोमड़ि का पहुच से बाहर थे ।
अंगुरों को देखकर लोमड़ी के मुह में बार-बार पानी भर आता था । वह सोचने लगा: ‘वाह ! कितने सुंदर और मीठे अंगूर है । काश मैं इन्हें खा सकती ।’ यह सोचकर लोमड़ी उछल-उछल कर अंगूरों के गुच्छों तक पहुंचने की कोशिश करने लगी ।
परंतु वह हर बार नाकाम रह जाती । अंत में बेचारी लोमड़ि उछल-उछल कर थक गई और अपने घर की ओर चल दी । जाते-जाते उसने सोचा : ‘ये अंगूर खट्टे हैं । इन्हें पाने के लिए अपना समय नष्ट करना ठीक नहीं !’
कहानी 2. एक दिन भरी दोपहर में एक लोमड़ी जंगल में घूम रही थी, वहाँ चलते-चलते रास्ते में उसे पेड़ से लिपटी एक बेल में अंगूर लटके हुए नजर आए।
अंगूर के गुच्छे इतने स्वादिष्ट लग रहे थे कि जैसे ही उस लालची लोमड़ी ने उन अंगूरों को देखा और उसके मुंह में पानी आ गया।
लोमड़ी ने सोचा यदि वह अंगूर का पूरा गुच्छा ले लेती है तो दिनभर उसे खाने के लिए भटकना नहीं पड़ेगा। लोमड़ी स्वादिष्ट अंगूर को खाने के लिए लपकी, किंतु अंगूर बहुत ऊंचाई में लगे थे और वह उन तक नहीं पहुँच पा रही थी।
लोमड़ी अंगूरों तक पहुँचने के लिए और ऊंची छलांग लगाई पर इस बार भी उसका प्रयास विफल रहा। बेचारी लोमड़ी तब हार कर एक जगह बैठ गई और थोड़ी देर बाद उसने यह सोचकर फिर से एक ऊंची छलांग लगाई कि इस बार वह इन स्वादिष्ट अंगूरों का आनंद ले लेगी किंतु इस बार भी वह असफल रही।
अब क्या था कई बार प्रयास करने के बाद भी जब उस लोमड़ी को अंगूर नहीं मिले तो उसने यह कह कर अपने मन को समझा लिया कि अंगूर खट्टे हैं इन्हें खाकर कोई फायदा नहीं है।
अंत में बेचारी लोमड़ी थक हार कर अपने घर वापस चली गई।
निष्कर्ष:
1. जब कोई मूर्ख किसी वस्तु को प्राप्त नहीं कर पाता तो वह उसे तुच्छ दृष्टि से देखने लगता है ।
2. जब कोई मूर्ख किसी वस्तु को प्राप्त नहीं कर पाता, तो अपनी कमजोरी छिपाने के लिए बहाना बनाता है और उस वस्तु को ही तुच्छ साबित करने की कोशिश करता है।