गणेश चतुर्थी की पूरी जानकारी

गणेश चतुर्थी की पूरी जानकारी

गणेश चतुर्थी की पूरी जानकारी

 

गणेश चतुर्थी की पूरी जानकारी: शिवजी और पार्वती के पुत्र हैं। उनका वाहन डिंक नामक मूषक है। गणों के स्वामी होने के कारण उनका एक नाम गणपति भी है। ज्योतिष में इनको केतु का देवता माना जाता है और जो भी संसार के साधन हैं, उनके स्वामी श्री गणेशजी हैं। हाथी जैसा सिर होने के कारण उन्हें गजानन भी कहते हैं। गणेश जी का नाम हिन्दू शास्त्रो के अनुसार किसी भी कार्य के लिये पहले पूज्य है। इसलिए इन्हें प्रथमपूज्य भी कहते है। गणेश कि उपसना करने वाला सम्प्रदाय गाणपत्य कहलाता है।

”वक्र तुंड महाकाय, सूर्य कोटि समप्रभ:। निर्विघ्नं कुरु मे देव शुभ कार्येषु सर्वदा”

शारिरिक संरचना

 

गणपति आदिदेव हैं जिन्होंने हर युग में अलग अवतार लिया। उनकी शारीरिक संरचना में भी विशिष्ट व गहरा अर्थ निहित है। शिवमानस पूजा में श्री गणेश को प्रणव (ॐ) कहा गया है। इस एकाक्षर ब्रह्म में ऊपर वाला भाग गणेश का मस्तक, नीचे का भाग उदर, चंद्रबिंदु लड्डू और मात्रा सूँड है।

 

चारों दिशाओं में सर्वव्यापकता की प्रतीक उनकी चार भुजाएँ हैं। वे लंबोदर हैं क्योंकि समस्त चराचर सृष्टि उनके उदर में विचरती है। बड़े कान अधिक ग्राह्यशक्ति व छोटी-पैनी आँखें सूक्ष्म-तीक्ष्ण दृष्टि की सूचक हैं। उनकी लंबी नाक (सूंड) महाबुद्धित्व का प्रतीक है।

गणपति जी के 12 नाम और उनके अर्थ – Lord Ganesha Names with Meaning

 

गणपति बप्पा को अलग-अलग राज्यों में 12 अलग-अलग नामों से जाना जाता है । नारद पुराण में भगवान गणेश जी के 12 नामों का उल्लेख किया गया है जो कि इस प्रकार है –

 

समुख – सुंदर मुख वाले
एकदंत – एक दंत वाले
कपिल – कपिल वर्ण वाले
गजकर्ण – हाथी के कान वाले
लंबोदर- लंबे पेट वाले
विकट – विपत्ति का नाश करने वाले
विनायक – न्याय करने वाले
धूम्रकेतू- धुंए के रंग वाले पताका वाले
गणाध्यक्ष- गुणों और देवताओं के अध्यक्ष
भालचंद्र – सर पर चंद्रमा धारण करने वाले
गजानन – हाथी के मुख वाले
विघ्नाशक- विघ्न को खत्म करने वाले

 

पिता- भगवान शंकर
माता- भगवती पार्वती
भाई- श्री कार्तिकेय (बड़े भाई)
बहन- -अशोकसुन्दरी
पत्नी- दो (१) ऋद्धि (२) सिद्धि (दक्षिण भारतीय संस्कृति में गणेशजी ब्रह्मचारी रूप में दर्शाये गये हैं)
पुत्र- दो 1. शुभ 2. लाभ
प्रिय भोग (मिष्ठान्न)- मोदक, लड्डू
प्रिय पुष्प- लाल रंग के
प्रिय वस्तु- दुर्वा (दूब), शमी-पत्र
अधिपति- जल तत्व के
प्रमुख अस्त्र- पाश, अंकुश
वाहन – मूषक

 

गणेश चतुर्थी हिन्दुओं का एक प्रमुख त्यौहार है। यह त्यौहार भारत के विभिन्न भागों में मनाया जाता है किन्तु महाराष्ट्र में बडी़ धूमधाम से मनाया जाता है। पुराणों के अनुसार इसी दिन गणेश का जन्म हुआ था।गणेश चतुर्थी पर हिन्दू भगवान गणेशजी की पूजा की जाती है। कई प्रमुख जगहों पर भगवान गणेश की बड़ी प्रतिमा स्थापित की जाती है। इस प्रतिमा का नो दिन तक पूजन किया जाता है। बड़ी संख्या में आस पास के लोग दर्शन करने पहुँचते है। नो दिन बाद गाजे बाजे से श्री गणेश प्रतिमा को किसी तालाब इत्यादि जल में विसर्जित किया जाता है।

 

शिवपुराण में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को मंगलमूर्ति गणेश की अवतरण-तिथि बताया गया है जबकि गणेशपुराण के मत से यह गणेशावतार भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुआ था। गण + पति = गणपति। संस्कृतकोशानुसार ‘गण’ अर्थात पवित्रक। ‘पति’ अर्थात स्वामी, ‘गणपति’ अर्थात पवित्रकों के स्वामी।

श्री गणेश चतुर्थी कब मनाई जाती है ? – When is Ganesh Chaturthi Celebrated in India

 

भारत में हिन्दूओं का मुख्य त्यौहार गणेश चतुर्थी भाद्रपद मास ( अगस्त या सितंबर ) की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है। गणपत गणेश के जन्मोत्सव के रूप में गणेश चतुर्थी का त्योहार पूरे देश में हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है।

 

गणेश चतुर्थी में गणेश महोत्सव का आयोजन किया जाता है। जगह-जगह मिट्टी से बनी गणेश जी की सुंदर प्रतिमा की प्रतिष्ठा की जाती है। ये महोत्सव 11 दिन तक या फिर अनंत चतुदर्शी के दिन तक चलता है। कुछ लोग अपने घरों में भी गणेश जी की प्रतिमा रखते हैं और 11 वें दिन गणेश प्रतिमा का धूमधाम से विर्सजन करते हैं।

 

महाराष्ट्र में गणेश उत्सव बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। गणेश पूजा के दौरान कपूर, लाल चंदन, लाल फूल, नारियल, गुड़, मोदक और दुरवा घास चढ़ाने की प्रथा है। गणेश भगवान माता पार्वती और भगवान शिव के पुत्र हैं। ये बुद्धि और समृद्धि के भगवान माने जाते हैं।

 

गणेश चतुर्थी के दिन लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और साफ कपड़े पहनकर गणपत गणेश की पूजा-अर्चना करते हैं साथ ही गणपति बप्पा को उनका प्रिय मोदक का भोग लगाते हैं।

 

भगवान गणेश जी के लिए स्वादिष्ट व्यंजन बनाते हैं और मंत्रोच्चारण कर, गणेश जी की पूजा-अर्चना आरती गाकर करते हैं। हिन्दू धर्म के लोग अपनी रीति-रिवाजों के अनुसार भक्ति गीत भी गाते हैं और सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।

 

गजानन के पूजन से भक्तों की सभी बाधाएं दूर हो जाती है और कष्टों का निवारण होता है साथ ही जो लोग विनायक जी की आराधना करते हैं उनका जीवन खुशियां से भर जाता है। गणपति बाप्पा को विघ्नहारी भी कहा जाता है क्योंकि गणपति बाप्पा विघ्नहारी और मंगलकारी हैं। उनकी पूजा मातृ से ही भक्तों के सारे विघ्न दूर हो जाते हैं।

गणेश उत्सव को लेकर खास तैयारी –

 

गणेश चतुर्थी का त्योहार आने के कई दिन से पहले से ही बाजारों में इसकी रौनक दिखने लगती है। बाजारों में दुकानें सुंदर-सुंदर गणेश प्रतिमाएं से सज जाती हैं। बड़ी संख्या में लोग खासकर महाराष्ट्र में अपने घरों में मूर्ति की स्थापना करते हैं और फिर अनंत चतुर्दशी वाले दिन गणेश प्रतिमा का विर्सजन करते हैं।

 

गणेश उत्सव की तैयारियों में लोग कई दिन पहले से ही जुट जाते हैं। जगह-जगह भव्य गणेश पंडालों का आयोजन किया जाता है, जिसमें पूरा विधि-विधान के साथ गणेश प्रतिमा स्थापित की जाती हैं।

 

इन दिनों भंडारों का भी आयोजन करवाए जाते हैं। और खास तरह की साज-सजावट भी होती है इस त्योहार में मानो पूरा माहौल भक्तिमय हो जाता है। गणेश विसर्जन के दौरान भक्ति का अद्भुत नजारा देखने को मिलता है। भक्त गण अपने गणपति जी को समुंदर और नदी में विर्सजित करते हैं इस दौरान

 

”गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया”

 

के जयकारों के साथ अपने बप्पा को विदाई देते हैं। इस तरह अनंत चतुर्दशी के दिन गणेश पूजा का समापन होता है।

 

गणेश पूजन और उपवास रखने से मिलता है 101 गुना फल और सुख-समृद्धि

 

गणपति बप्पा का जनमोत्सव गणेश चतुर्थी को विनायक चतर्थी के नाम से भी जाना जाता है। जबकि भविष्य पुराण के मुताबिक शिवा, संज्ञा और सुधा यह तीन चतुर्थी होती है इनमें भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को संज्ञा कहते हैं।

 

ऐसी भी मान्यता है कि इसमें स्नान और उपवास करने से 101 गुना फल मिलता है और सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को मध्यान्ह में भगवान गणेश का जन्म हुआ था इसी कारण यह तिथि महक नाम से भी जानी जाती है। इस दिन भगवान गणपति की पूजा, उपासना व्रत, कीर्तन और जागरण करने से भक्तों को मनवांछित फल की प्राप्ति होती है।

गणेश चतुर्थी की पूरी जानकारी

पौराणिक कथा Mythology Behind Shri Ganesha Chaturthi

 

एक बार महादेवजी स्नान करने के लिए भोगावती गए। उनके जाने के पश्चात पार्वती ने अपने तन के मैल से एक पुतला बनाया और उसका नाम ‘गणेश’ रखा। पार्वती ने उससे कहा- हे पुत्र! तुम एक मुगदल लेकर द्वार पर बैठ जाओ। मैं भीतर जाकर स्नान कर रही हूँ। जब तक मैं स्नान न कर लूं, तब तक तुम किसी भी पुरुष को भीतर मत आने देना।

 

भोगावती में स्नान करने के बाद जब भगवान शिवजी आए तो गणेशजी ने उन्हें द्वार पर रोक लिया। इसे शिवजी ने अपना अपमान समझा और क्रोधित होकर उनका सिर धड़ से अलग करके भीतर चले गए। पार्वती ने उन्हें नाराज देखकर समझा कि भोजन में विलंब होने के कारण महादेवजी नाराज हैं। इसलिए उन्होंने तत्काल दो थालियों में भोजन परोसकर शिवजी को बुलाया।

 

तब दूसरा थाल देखकर तनिक आश्चर्यचकित होकर शिवजी ने पूछा- यह दूसरा थाल किसके लिए हैं? पार्वती जी बोलीं- पुत्र गणेश के लिए हैं, जो बाहर द्वार पर पहरा दे रहा है।

 

यह सुनकर शिवजी और अधिक आश्चर्यचकित हुए। तुम्हारा पुत्र पहरा दे रहा है? हाँ नाथ! क्या आपने उसे देखा नहीं? देखा तो था, किन्तु मैंने तो अपने रोके जाने पर उसे कोई उद्दण्ड बालक समझकर उसका सिर काट दिया। यह सुनकर पार्वती जी बहुत दुःखी हुईं। वे विलाप करने लगीं। तब पार्वती जी को प्रसन्न करने के लिए भगवान शिव ने एक हाथी के बच्चे का सिर काटकर बालक के धड़ से जोड़ दिया। पार्वती जी इस प्रकार पुत्र गणेश को पाकर बहुत प्रसन्न हुई। उन्होंने पति तथा पुत्र को प्रीतिपूर्वक भोजन कराकर बाद में स्वयं भोजन किया।

 

यह घटना भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को हुई थी। इसीलिए यह तिथि पुण्य पर्व के रूप में मनाई जाती है।

कथा

 

शिवपुराणके अन्तर्गत रुद्रसंहिताके चतुर्थ (कुमार) खण्ड में यह वर्णन है कि माता पार्वती ने स्नान करने से पूर्व अपनी मैल से एक बालक को उत्पन्न करके उसे अपना द्वारपालबना दिया। शिवजी ने जब प्रवेश करना चाहा तब बालक ने उन्हें रोक दिया। इस पर शिवगणोंने बालक से भयंकर युद्ध किया परंतु संग्राम में उसे कोई पराजित नहीं कर सका। अन्ततोगत्वा भगवान शंकर ने क्रोधित होकर अपने त्रिशूल से उस बालक का सर काट दिया। इससे भगवती शिवा क्रुद्ध हो उठीं और उन्होंने प्रलय करने की ठान ली। भयभीत देवताओं ने देवर्षिनारद की सलाह पर जगदम्बा की स्तुति करके उन्हें शांत किया। शिवजी के निर्देश पर विष्णुजीउत्तर दिशा में सबसे पहले मिले जीव (हाथी) का सिर काटकर ले आए। मृत्युंजय रुद्र ने गज के उस मस्तक को बालक के धड पर रखकर उसे पुनर्जीवित कर दिया। माता पार्वती ने हर्षातिरेक से उस गजमुखबालक को अपने हृदय से लगा लिया और देवताओं में अग्रणी होने का आशीर्वाद दिया। ब्रह्मा, विष्णु, महेश ने उस बालक को सर्वाध्यक्ष घोषित करके अग्रपूज्यहोने का वरदान दिया। भगवान शंकर ने बालक से कहा-गिरिजानन्दन! विघ्न नाश करने में तेरा नाम सर्वोपरि होगा। तू सबका पूज्य बनकर मेरे समस्त गणों का अध्यक्ष हो जा। गणेश्वर!तू भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को चंद्रमा के उदित होने पर उत्पन्न हुआ है। इस तिथि में व्रत करने वाले के सभी विघ्नों का नाश हो जाएगा और उसे सब सिद्धियां प्राप्त होंगी। कृष्णपक्ष की चतुर्थी की रात्रि में चंद्रोदय के समय गणेश तुम्हारी पूजा करने के पश्चात् व्रती चंद्रमा को अ‌र्घ्यदेकर ब्राह्मण को मिष्ठान खिलाए। तदोपरांत स्वयं भी मीठा भोजन करे। वर्षपर्यन्तश्रीगणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले की मनोकामना अवश्य पूर्ण होती है।

गणेश जी की पूजा कुछ भी शुरू करने से पहले क्यों की जाती है?

 

शिवजी ने साथ ही गणेश जी को आशीर्वाद देते हुए कहा की जहाँ भी पृथ्वी पर कुछ नया और अच्छे की शुरुवात की जाएगी वहां गणेश का नाम लिए जायेगा और गणेश की आराधना करने वाले व्यक्ति का सभी दुःख दूर होगा। इसीलिए हम भारतीय कुछ भी अच्छा और नया शुरू करने जैसे विवाह, कोई नया व्यापार शुरू करने से पहले, नया घर प्रवेश, या जब कोई शिशु प्रथम बार स्कूल जाने से पूर्व गणेश जी की पूजा करते हैं और उनसे सुख-शांति की कामना करते हैं।

चंद्र दर्शन दोष से बचाव

 

प्रत्येक शुक्ल पक्ष चतुर्थी को चन्द्रदर्शन के पश्चात्‌ व्रती को आहार लेने का निर्देश है, इसके पूर्व नहीं। किंतु भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को रात्रि में चन्द्र-दर्शन (चन्द्रमा देखने को) निषिद्ध किया गया है।

 

जो व्यक्ति इस रात्रि को चन्द्रमा को देखते हैं उन्हें झूठा-कलंक प्राप्त होता है। ऐसा शास्त्रों का निर्देश है। यह अनुभूत भी है। इस गणेश चतुर्थी को चन्द्र-दर्शन करने वाले व्यक्तियों को उक्त परिणाम अनुभूत हुए, इसमें संशय नहीं है। यदि जाने-अनजाने में चन्द्रमा दिख भी जाए तो निम्न मंत्र का पाठ अवश्य कर लेना चाहिए-

भगवान गणेश जी की पूजन- विधि – Ganesh Pooja Vidhi

 

गणेश जी का पूजन अगर सही विधि से किया जाए तो भक्तों को मन चाहे फल की प्राप्ति होती है। भगवान गणपति की पूजा आराधना की विधि नीचे लिखी गई है –

 

सबसे पहले स्नान कर लाल वस्त्र पहने क्योंकी लाल कपड़ा भगवान गणेश जी का सबसे ज्यादा प्रिय है।
गणेश चतुर्थी की पूजा के लिए एक चौकी पर लाल दुपट्टा बिछा कर उस पर सिंदूर या रोली सज्जित कर आसन बनायें और उसके बीच में गणपति की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें, और गाय के घी से युक्त दीपक जलाएं। पूजा के दौरान गणेश जी का मुख उत्तर या पूर्व दिशा में ही रखें।
ओम देवताभ्यो नमः मंत्र के साथ दीपक का पूजन करें। इसके बाद हाथ जोड़कर भगवान गणेश की प्रतिमा के सम्मुख आवाहन मुद्रा में खड़े हो कर उनका आवाहन करें। और फिर भगवान गणेश जी की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा करें। आवाहन एवं प्रतिष्ठापन के बाद भगवान गणेश के आसन के सम्मुख पांच पुष्प अञ्जलि में लेकर छोड़े।
अब गणेश जी का पंचामृत से अभिषेक करें।
पंचामृत में आप सबसे पहले भगवान गणेश जी का अभिषेक पहले दूध से करें, फिर दही से करें, फिर घी से करें और फिर गंगा जल से या शुद्ध जल से करें । इस तरह पंचामृत से गणपति बाप्पा का अभिषेक करें।
अभिषेक करने के बाद गजानन को रोली और कलावा चढ़ाए।
सिंदूर गणेश जी को बेहद प्रिय है इसलिए गणपति बप्पा को सिंदूर अवश्य चढ़ाएं।
भगवान गणेश जी की दो पत्नियां रिद्धि और सिद्धि हैं इसलिए रिद्दि-सिद्धि के रूप में उन्हें दो सुपारी और पान चढ़ाएं।
फल, फूल और हरी घास अथवा दूवा चढ़ाए और फूल में गणेश जी को पीला कनेर बेहद प्रिय है, पीला कनेर चढ़ाएं और दूब चढ़ाएं।
इसके बाद गणेश जी के सबसे प्रिय मिठाई मोदक (लड्डू ) का भोग लगाएं।
इसके बाद सभी परिवारजनों के साथ मिलकर गणेश जी की आरती गाएं।
श्री गणेश जी का मंत्रोच्चारण करें और उन्हें 12 नामों का भी उच्चारण करें।
भगवान गणपति जी के जयकारे लगाएं।

 

श्री गणेश मंत्र:
ॐ गं गणपतये नम:

 

ऋद्धि मंत्र:
ॐ हेमवर्णायै ऋद्धये नम:

 

सिद्धि मंत्र:
ॐ सर्वज्ञानभूषितायै नम:

 

लाभ मंत्र:
ॐ सौभाग्य प्रदाय धन-धान्ययुक्ताय लाभाय नम:

 

शुभ मंत्र:
ॐ पूर्णाय पूर्णमदाय शुभाय नम:

गणेश मंत्र GANESH MANTRA

ॐ गंगणपतये नमो नम:
श्री सिध्धीविनायक नमो नम:
अष्टविनायक नमो नम:
गणपती बाप्पा मोरया
ॐ गंगणपतये नमो नम:
श्री सिध्धीविनायक नमो नम:
अष्टविनायक नमो नम:
गणपती बाप्पा मोरया
ॐ गंगणपतये नमो नम:
श्री सिध्धीविनायक नमो नम:
अष्टविनायक नमो नम:
गणपती बाप्पा मोरया
ॐ गंगणपतये नमो नम:
श्री सिध्धीविनायक नमो नम:
अष्टविनायक नमो नम:
गणपती बाप्पा मोरया
ॐ गंगणपतये नमो नम:
श्री सिध्धीविनायक नमो
अष्टविनायक नमो नम:
गणपती बाप्पा मोरया
ॐ गंगणपतये नमो नम:
श्री सिध्धीविनायक नमो
अष्टविनायक नमो नम:
गणपती बाप्पा मोरया
ॐ गंगणपतये नमो नम:
श्री सिध्धीविनायक नमो नम:
अष्टविनायक नमो नम:
गणपती बाप्पा मोरया
ॐ गं गणपतये नमो नम:
श्री सिध्धीविनायक नमो
अष्टविनायक नमो नम:
गणपती बाप्पा मोरया
ॐ गंगणपतये नमो नम:
श्री सिध्धीविनायक नमो
अष्टविनायक नमो नम:
गणपती बाप्पा मोरया
ॐ गंगणपतये नमो नम:
श्री सिध्धीविनायक नमो नम:
अष्टविनायक नमो नम:
गणपती बाप्पा मोरया
ॐ गंगणपतये नमो नम:
श्री सिध्धीविनायक नमो नम:
अष्टविनायक नमो नम:
गणपती बाप्पा मोरया
ॐ गंगणपतये नमो नम:
श्री सिध्धीविनायक नमो नम:
अष्टविनायक नमो नम:
गणपती बाप्पा मोरया

गणेश चतुर्थी की पूरी जानकारी

अनंत चतुर्दशी

इस दिन अनन्त भगवान की पूजा करके संकटों से रक्षा करने वाला अनन्तसूत्रबांधा जाता है। कहा जाता है कि जब पाण्डव जुएमें अपना सारा राज-पाट हारकर वन में कष्ट भोग रहे थे, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उन्हें अनन्तचतुर्दशीका व्रत करने की सलाह दी थी। धर्मराज युधिष्ठिर ने अपने भाइयों तथा द्रौपदीके साथ पूरे विधि-विधान से यह व्रत किया तथा अनन्तसूत्रधारण किया। अनन्तचतुर्दशी-व्रतके प्रभाव से पाण्डव सब संकटों से मुक्त हो गए।

विधि

व्रत-विधान-व्रतकर्ता प्रात:स्नान करके व्रत का संकल्प करें। शास्त्रों में यद्यपि व्रत का संकल्प एवं पूजन किसी पवित्र नदी या सरोवर के तट पर करने का विधान है, तथापि ऐसा संभव न हो सकने की स्थिति में घर में पूजागृह की स्वच्छ भूमि पर कलश स्थापित करें। कलश पर शेषनाग की शैय्यापर लेटे भगवान विष्णु की मूíत अथवा चित्र को रखें। उनके समक्ष चौदह ग्रंथियों (गांठों) से युक्त अनन्तसूत्र (डोरा) रखें। इसके बाद ॐ अनन्तायनम: मंत्र से भगवान विष्णु तथा अनंतसूत्रकी षोडशोपचार-विधिसे पूजा करें। पूजनोपरांतअनन्तसूत्रको मंत्र पढकर पुरुष अपने दाहिने हाथ और स्त्री बाएं हाथ में बांध लें-

अनंन्तसागरमहासमुद्रेमग्नान्समभ्युद्धरवासुदेव।

अनंतरूपेविनियोजितात्माह्यनन्तरूपायनमोनमस्ते॥

अनंतसूत्रबांध लेने के पश्चात किसी ब्राह्मण को नैवेद्य (भोग) में निवेदित पकवान देकर स्वयं सपरिवार प्रसाद ग्रहण करें। पूजा के बाद व्रत-कथा को पढें या सुनें। कथा का सार-संक्षेप यह है- सत्ययुग में सुमन्तुनाम के एक मुनि थे। उनकी पुत्री शीला अपने नाम के अनुरूप अत्यंत सुशील थी। सुमन्तु मुनि ने उस कन्या का विवाह कौण्डिन्यमुनि से किया। कौण्डिन्यमुनि अपनी पत्नी शीला को लेकर जब ससुराल से घर वापस लौट रहे थे, तब रास्ते में नदी के किनारे कुछ स्त्रियां अनन्त भगवान की पूजा करते दिखाई पडीं। शीला ने अनन्त-व्रत का माहात्म्य जानकर उन स्त्रियों के साथ अनंत भगवान का पूजन करके अनन्तसूत्रबांध लिया। इसके फलस्वरूप थोडे ही दिनों में उसका घर धन-धान्य से पूर्ण हो गया।

गणेश चतुर्थी की पूरी जानकारी

कथा

एक दिन कौण्डिन्य मुनि की दृष्टि अपनी पत्नी के बाएं हाथ में बंधे अनन्तसूत्रपर पडी, जिसे देखकर वह भ्रमित हो गए और उन्होंने पूछा-क्या तुमने मुझे वश में करने के लिए यह सूत्र बांधा है? शीला ने विनम्रतापूर्वक उत्तर दिया-जी नहीं, यह अनंत भगवान का पवित्र सूत्र है। परंतु ऐश्वर्य के मद में अंधे हो चुके कौण्डिन्यने अपनी पत्नी की सही बात को भी गलत समझा और अनन्तसूत्रको जादू-मंतर वाला वशीकरण करने का डोरा समझकर तोड दिया तथा उसे आग में डालकर जला दिया। इस जघन्य कर्म का परिणाम भी शीघ्र ही सामने आ गया। उनकी सारी संपत्ति नष्ट हो गई। दीन-हीन स्थिति में जीवन-यापन करने में विवश हो जाने पर कौण्डिन्यऋषि ने अपने अपराध का प्रायश्चित करने का निर्णय लिया। वे अनन्त भगवान से क्षमा मांगने हेतु वन में चले गए। उन्हें रास्ते में जो मिलता वे उससे अनन्तदेवका पता पूछते जाते थे। बहुत खोजने पर भी कौण्डिन्यमुनि को जब अनन्त भगवान का साक्षात्कार नहीं हुआ, तब वे निराश होकर प्राण त्यागने को उद्यत हुए। तभी एक वृद्ध ब्राह्मण ने आकर उन्हें आत्महत्या करने से रोक दिया और एक गुफामें ले जाकर चतुर्भुजअनन्तदेवका दर्शन कराया।

भगवान ने मुनि से कहा-तुमने जो अनन्तसूत्रका तिरस्कार किया है, यह सब उसी का फल है। इसके प्रायश्चित हेतु तुम चौदह वर्ष तक निरंतर अनन्त-व्रत का पालन करो। इस व्रत का अनुष्ठान पूरा हो जाने पर तुम्हारी नष्ट हुई सम्पत्ति तुम्हें पुन:प्राप्त हो जाएगी और तुम पूर्ववत् सुखी-समृद्ध हो जाओगे। कौण्डिन्यमुनिने इस आज्ञा को सहर्ष स्वीकार कर लिया। भगवान ने आगे कहा-जीव अपने पूर्ववत् दुष्कर्मोका फल ही दुर्गति के रूप में भोगता है। मनुष्य जन्म-जन्मांतर के पातकों के कारण अनेक कष्ट पाता है। अनन्त-व्रत के सविधि पालन से पाप नष्ट होते हैं तथा सुख-शांति प्राप्त होती है। कौण्डिन्यमुनि ने चौदह वर्ष तक अनन्त-व्रत का नियमपूर्वक पालन करके खोई हुई समृद्धि को पुन:प्राप्त कर लिया।

कैसे होंगे भगवान श्री गणेश प्रसन्न, पढ़ें 5 उपाय

गणपतिजी का बीज मंत्र ‘गं’ है। इनसे युक्त मंत्र- ‘ॐ गं गणपतये नमः’ का जप करने से सभी कामनाओं की पूर्ति होती है। षडाक्षर मंत्र का जप आर्थिक प्रगति व समृद्धि प्रदायक है।

– ॐ वक्रतुंडाय हुम्‌
किसी के द्वारा नेष्ट के लिए की गई क्रिया को नष्ट करने के लिए, विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए उच्छिष्ट गणपति की साधना करना चाहिए। इनका जप करते समय मुंह में गुड़, लौंग, इलायची, पताशा, ताम्बुल, सुपारी होना चाहिए। यह साधना अक्षय भंडार प्रदान करने वाली है। इसमें पवित्रता-अपवित्रता का विशेष बंधन नहीं है।

उच्छिष्ट गणपति का मंत्र

ॐ हस्ति पिशाचि लिखे स्वाहा
आलस्य, निराशा, कलह, विघ्न दूर करने के लिए विघ्नराज रूप की आराधना का यह मंत्र जपें –
– गं क्षिप्रप्रसादनाय नम:

विघ्न को दूर करके धन व आत्मबल की प्राप्ति के लिए हेरम्ब गणपति का मंत्र जपें –

‘ॐ गं नमः’

रोजगार की प्राप्ति व आर्थिक वृद्धि के लिए लक्ष्मी विनायक मंत्र का जप करें-

ॐ श्रीं गं सौभ्याय गणपतये वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।
विवाह में आने वाले दोषों को दूर करने वालों को त्रैलोक्य मोहन गणेश मंत्र का जप करने से शीघ्र विवाह व अनुकूल जीवनसाथी की प्राप्ति होती है-

ॐ वक्रतुण्डैक दंष्ट्राय क्लीं ह्रीं श्रीं गं गणपते वर वरद सर्वजनं मे वशमानय स्वाहा।

इन मंत्रों के अतिरिक्त गणपति अथर्वशीर्ष, संकटनाशन गणेश स्तोत्र, गणेशकवच, संतान गणपति स्तोत्र, ऋणहर्ता गणपति स्तोत्र, मयूरेश स्तोत्र, गणेश चालीसा का पाठ करने से गणेशजी की कृपा प्राप्त होती है।

गणेश चतुर्थी की पूरी जानकारी

श्री गणपति आरती Ganapati Aarti: Sukhkarta Dukhharta

।। श्री गणेशाय नमः ।।

सुखकर्ता दुखहर्ता वार्ता विघ्नाची |
नुरवी पूर्वी प्रेम कृपा जयाची |
सर्वांगी सुंदर उटी शेंदुराची |
कंठी झळके माळ मुक्ताफळाची || १ ||

जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती |
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती ||
रत्नखचित फरा तूज गौरीकुमरा |
चंदनाची उटी कुंकुमकेशरा |
हिरे जडित मुकुट शोभतो बरा |
रुणझुणती नुपुरे चरणी घागरिया || 2 ||

लंबोदर पितांबर फनी वरवंदना |
सरळ सोंड वक्रतुंड त्रिनयना |
दास रामाचा वाट पाहे सदना |
संकटी पावावे निर्वाणी रक्षावे सुरवंदना |
जय देव जय देव जय मंगलमूर्ती |
दर्शनमात्रे मनकामना पुरती || ३ ||

कुमकुमार्चन पूजा की पूरी जानकारी 

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