श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज का इतिहास
shrimant Chhatrapati Shivaji Maharaj History in hindi
शिवाजी के पिता का नाम शाहजी भोंसले था। वह एक मराठा सेनापति थे। उनकी मां जीजाबाई थीं। शिवाजी का परिवार एक योद्धा परिवार था। शिवाजी महाराज के पिता डेक्कन सल्तनत के लिए काम करते थे। शिवाजी अपनी मां जीजाबाई से अधिक प्रभावित थे। शिवाजी की मां बेहद धार्मिक थीं और यही प्रभाव उनके अंदर भी आ गया।
शिवाजी ने अपनी मां से रामायण और महाभारत की खूब सारी कहानियां सुनीं थी। इस वजह से उनके अंदर हिन्दुतत्व की भावना समृद्ध हुई। और आगे उन्होंने जो भी काम किया वह हिंदुत्व को बचाने के लिए किया।
प्रमुख तिथियां और घटनाएं
1594 : शिवाजी महाराज के पिता शाहजी भोंसले का जन्म
1596 : माँ जीजाबाई का जन्म
1630/2/19 : शिवाजी महाराज का जन्म।
1630 : से 1631 तक महाराष्ट्र में अकाल
14 मई 1640 : शिवाजी महाराज और साईबाई का विवाह
1646 : शिवाजी महाराज ने पुणे के पास तोरण दुर्ग पर अधिकार कर लिया।
1656 : शिवाजी महाराज ने चन्द्रराव मोरे से जावली जीता।
10 नवंबर, 1659 : शिवाजी महाराज ने अफजल खान का वध किया।
5 सितंबर, 1659 : संभाजी का जन्म।
1659 : शिवाजी महाराज ने बीजापुर पर अधिकार कर लिया।
6 से 10 जनवरी, 1664 : शिवाजी महाराज ने सूरत पर धावा बोला और बहुत सारी धन-सम्पत्ति प्राप्त की।
1665 : शिवाजी महाराज ने औरंगजेब के साथ पुरन्धर शांति सन्धि पर हस्ताक्षर किया।
1666 : शिवाजी महाराज आगरा कारावास से भाग निकले।
1667 : औरंगजेब राजा शिवाजी महाराज के शीर्षक अनुदान। उन्होंने कहा कि कर लगाने का अधिकार प्राप्त है।
1668 : शिवाजी महाराज और औरंगजेब के बीच शांति सन्धि
1670 : शिवाजी महाराज ने दूसरी बार सूरत पर धावा बोला।
1674 : शिवाजी महाराज ने रायगढ़ में ‘छत्रपति’की पदवी मिली और राज्याभिषेक करवाया । 18 जून को जीजाबाई की मृत्यु।
1680 : शिवाजी महाराज की मृत्यु।
भारत के वीर सपूतों में से एक श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में सभी लोग जानते हैं।
छत्रपति शिवाजी महाराज का जन्म सन् 19 फरवरी 1630 में मराठा परिवार में हुआ। कुछ लोग 1627 में उनका जन्म बताते हैं। उनका पूरा नाम शिवाजी शाहजी भोंसले था।
शिवाजी पिता शाहजी और माता जीजाबाई के पुत्र थे। उनका जन्म स्थान पुणे के पास स्थित शिवनेरी का दुर्ग है।
धार्मिक संस्कारों का निर्माण :
उनका बचपन उनकी माता जिजाऊ के मार्गदर्शन में बीता। माता जीजाबाई धार्मिक स्वभाव वाली होते हुए भी गुण-स्वभाव और व्यवहार में वीरंगना नारी थीं। इसी कारण उन्होंने बालक शिवा का पालन-पोषण रामायण, महाभारत तथा अन्य भारतीय वीरात्माओं की उज्ज्वल कहानियां सुना और शिक्षा देकर किया था। दादा कोणदेव के संरक्षण में उन्हें सभी तरह की सामयिक युद्ध आदि विधाओं में भी निपुण बनाया था। धर्म, संस्कृति और राजनीति की भी उचित शिक्षा दिलवाई थी। उस युग में परम संत रामदेव के संपर्क में आने से शिवाजी पूर्णतया राष्ट्रप्रेमी, कर्त्तव्यपरायण एवं कर्मठ योद्धा बन गए।
बचपन में खेल खेल मे सीखा किला जीतना :
बचपन में शिवाजी अपनी आयु के बालक इकट्ठे कर उनके नेता बनकर युद्ध करने और किले जीतने का खेल खेला करते थे। युवावस्था में आते ही उनका खेल वास्तविक कर्म शत्रु बनकर शत्रुओं पर आक्रमण कर उनके किले आदि भी जीतने लगे। जैसे ही शिवाजी ने पुरंदर और तोरण जैसे किलों पर अपना अधिकार जमाया, वैसे ही उनके नाम और कर्म की सारे दक्षिण में धूम मच गई, यह खबर आग की तरह आगरा और दिल्ली तक जा पहुंची। अत्याचारी किस्म के तुर्क, यवन और उनके सहायक सभी शासक उनका नाम सुनकर ही मारे डर के चिंतित होने लगे थे।
पत्नी और पुत्र :
छत्रपति शिवाजी महाराज का विवाह सन् 14 मई 1640 में सइबाई निम्बालकर के साथ लाल महल, पुना में हुआ था। उनके पुत्र का नाम सम्भाजी था। सम्भाजी (14 मई, 1657– मृत्यु: 11 मार्च, 1689) शिवाजी के ज्येष्ठ पुत्र और उत्तराधिकारी थे, जिसने 1680 से 1689 ई. तक राज्य किया। शम्भुजी में अपने पिता की कर्मठता और दृढ़ संकल्प का अभाव था। सम्भाजी की पत्नी का नाम येसुबाई था। उनके पुत्र और उत्तराधिकारी राजाराम थे।
shrimant Chhatrapati Shivaji Maharaj History in hindi
धोखे से जब शिवाजी को मारना चाहा :
शिवाजी के बढ़ते प्रताप से आतंकित बीजापुर के शासक आदिलशाह जब शिवाजी को बंदी न बना सके तो उन्होंने शिवाजी के पिता शाहजी को गिरफ्तार किया। पता चलने पर शिवाजी आगबबूला हो गए। उन्होंने नीति और साहस का सहारा लेकर छापामारी कर जल्द ही अपने पिता को इस कैद से आजाद कराया।
तब बीजापुर के शासक ने शिवाजी को जीवित अथवा मुर्दा पकड़ लाने का आदेश देकर अपने मक्कार सेनापति अफजल खां को भेजा। उसने भाईचारे व सुलह का झूठा नाटक रचकर शिवाजी को अपनी बांहों के घेरे में लेकर मारना चाहा, पर समझदार शिवाजी के हाथ में छिपे बघनखे का शिकार होकर वह स्वयं मारा गया। इससे उसकी सेनाएं अपने सेनापति को मरा पाकर वहां से दुम दबाकर भाग गईं।
shrimant Chhatrapati Shivaji Maharaj History in hindi
मुगलों से टक्कर :
शिवाजी की बढ़ती हुई शक्ति से चिंतित हो कर मुगल बादशाह औरंगजेब ने दक्षिण में नियुक्त अपने सूबेदार को उन पर चढ़ाई करने का आदेश दिया। लेकिन सुबेदार को मुंह की खानी पड़ी। शिवाजी से लड़ाई के दौरान उसने अपना पुत्र खो दिया और खुद उसकी अंगुलियां कट गई। उसे मैदान छोड़कर भागना पड़ा। इस घटना के बाद औरंगजेब ने अपने सबसे प्रभावशाली सेनापति मिर्जा राजा जयसिंह के नेतृत्व में लगभग 1,00,000 सैनिकों की फौज भेजी।
शिवाजी को कुचलने के लिए राजा जयसिंह ने बीजापुर के सुल्तान से संधि कर पुरन्दर के क़िले को अधिकार में करने की अपने योजना के प्रथम चरण में 24 अप्रैल, 1665 ई. को ‘व्रजगढ़’ के किले पर अधिकार कर लिया। पुरन्दर के किले की रक्षा करते हुए शिवाजी का अत्यन्त वीर सेनानायक ‘मुरार जी बाजी’ मारा गया। पुरन्दर के क़िले को बचा पाने में अपने को असमर्थ जानकर शिवाजी ने महाराजा जयसिंह से संधि की पेशकश की। दोनों नेता संधि की शर्तों पर सहमत हो गए और 22 जून, 1665 ई. को ‘पुरन्दर की सन्धि’ सम्पन्न हुई।
shrimant Chhatrapati Shivaji Maharaj History in hindi
शिवाजी के राज्य की सीमा :
शिवाजी की पूर्वी सीमा उत्तर में बागलना को छूती थी और फिर दक्षिण की ओर नासिक एवं पूना जिलों के बीच से होती हुई एक अनिश्चित सीमा रेखा के साथ समस्त सतारा और कोल्हापुर के जिले के अधिकांश भाग को अपने में समेट लेती थी। पश्चिमी कर्नाटक के क्षेत्र बाद में सम्मिलित हुए। स्वराज का यह क्षेत्र तीन मुख्य भागों में विभाजित था:-
1.पूना से लेकर सल्हर तक का क्षेत्र कोंकण का क्षेत्र, जिसमें उत्तरी कोंकण भी सम्मिलित था, पेशवा मोरोपंत पिंगले के नियंत्रण में था।
2. उत्तरी कनारा तक दक्षिणी कोंकण का क्षेत्र अन्नाजी दत्तों के अधीन था।
3.दक्षिणी देश के जिले, जिनमें सतारा से लेकर धारवाड़ और कोफाल का क्षेत्र था, दक्षिणी पूर्वी क्षेत्र के अंतर्गत आते थे और दत्ताजी पंत के नियंत्रण में थे। इन तीन सूबों को पुनः परगनों और तालुकों में विभाजित किया गया था। परगनों के अंतर्गत तरफ और मौजे आते थे।
शिवाजी की सेना :
शिवाजी ने अपनी एक स्थायी सेना बनाई थी। शिवाजी की मृत्यु के समय उनकी सेना में 30-40 हजार नियमित और स्थायी रूप से नियुक्त घुड़सवार, एक लाख पदाति और 1260 हाथी थे। उनके तोपखानों के संबंध में ठीक-ठीक जानकारी उपलब्ध नहीं है।
घुड़सवार सेना दो श्रेणियों में विभाजित थी:
बारगीर व घुड़सवार सैनिक थे जिन्हें राज्य की ओर से घोड़े और शस्त्र दिए जाते थे सिल्हदार जिन्हें व्यवस्था आप करनी पड़ती थी। घुड़सवार सेना की सबसे छोटी इकाई में 25 जवान होते थे, जिनके ऊपर एक हवलदार होता था। पांच हवलदारों का एक जुमला होता था। जिसके ऊपर एक जुमलादार होता था। दस जुमलादारों की एक हजारी होती थी और पांच हजारियों के ऊपर एक पंजहजारी होता था। वह सरनोबत के अंतर्गत आता था। प्रत्येक 25 टुकड़ियों के लिए राज्य की ओर से एक नाविक और भिश्ती दिया जाता था।
शिवाजी के दुर्ग (किले) :
मराठा सैन्य व्यवस्था के विशिष्ट लक्षण थे क़िले। विवरणकारों के अनुसार शिवाजी के पास 250 किले थे। जिनकी मरम्मत पर वे बड़ी रकम खर्च करते थे। शिवाजी ने कई दुर्गों पर अधिकार किया जिनमें से एक था सिंहगढ़ दुर्ग, जिसे जीतने के लिए उन्होंने तानाजी को भेजा था। इस दुर्ग को जीतने के दौरान तानाजी ने वीरगति पाई थी।- गढ़ आला पण सिंह गेला (गढ़ तो हमने जीत लिया पर सिंह हमें छोड़ कर चला गया)। बीजापुर के सुल्तान की राज्य सीमाओं के अंतर्गत रायगढ़ (1646) में चाकन, सिंहगढ़ और पुरन्दर सरीखे दुर्ग भी शीघ्र उनके अधिकारों में आ गए।
शिवाजी की आगरा यात्रा :
अपनी सुरक्षा का पूर्ण आश्वासन प्राप्त कर छत्रपति शिवाजी आगरा के दरबार में औरंगजेब से मिलने के लिए तैयार हो गए। वह 9 मई, 1666 ई को अपने पुत्र शम्भाजी एवं 4000 मराठा सैनिकों के साथ मुगल दरबार में उपस्थित हुए, परन्तु औरंगजेब द्वारा उचित सम्मान न प्राप्त करने पर शिवाजी ने भरे हुए दरबार में औरंगजेब को ‘विश्वासघाती’ कहा, जिसके परिणमस्वरूप औरंगजेब ने शिवाजी एवं उनके पुत्र को ‘जयपुर भवन’ में कैद कर दिया। वहां से शिवाजी 13 अगस्त, 1666 ई को फलों की टोकरी में छिपकर फरार हो गए और 22 सितम्बर, 1666 ई. को रायगढ़ पहुंचे।
गुरिल्ला युद्ध के अविष्कारक : कहते हैं कि छत्रपति शिवाजी ने ही भारत में पहली बार गुरिल्ला युद्ध का आरम्भ किया था। उनकी इस युद्ध नीती से प्रेरित होकर ही वियतनामियों ने अमेरिका से जंगल जीत ली थी। इस युद्ध का उल्लेख उस काल में रचित ‘शिव सूत्र’ में मिलता है। गोरिल्ला युद्ध एक प्रकार का छापामार युद्ध। मोटे तौर पर छापामार युद्ध अर्धसैनिकों की टुकड़ियों अथवा अनियमित सैनिकों द्वारा शत्रुसेना के पीछे या पार्श्व में आक्रमण करके लड़े जाते हैं।
समर्थ रामदास : ‘हिन्दू पद पादशाही’ के संस्थापक शिवाजी के गुरु रामदासजी का नाम भारत के साधु-संतों व विद्वत समाज में सुविख्यात है। उन्होंने ‘दासबोध’ नामक एक ग्रन्थ की रचना भी की थी, जो मराठी भाषा में है। सम्पूर्ण भारत में कश्मीर से कन्याकुमारी तक उन्होंने 1100 मठ तथा अखाड़े स्थापित कर स्वराज्य स्थापना के लिए जनता को तैयार करने का प्रयत्न किया। उन्हें अखाड़ों की स्थापना का श्रेय जाता है इसीलिए उन्हें भगवान हनुमानजी का अवतर माना गया जवकि वे हनुमानजी के परम भक्त थे।
छत्रपति शिवाजी महाराज अपने गुरु से प्रेरणा लेकर ही कोई कार्य करते थे। छत्रपति महाराजा शिवाजी को ‘महान शिवाजी’ बनाने में समर्थ रामदासजी का बहुत बड़ा योगदान रहा।
तुलजा भवानी के उपासक : महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में स्थित है तुलजापुर। एक ऐसा स्थान जहां छत्रपति शिवाजी की कुलदेवी मां तुलजा भवानी स्थापित हैं, जो आज भी महाराष्ट्र व अन्य राज्यों के कई निवासियों की कुलदेवी के रूप में प्रचलित हैं। वीर श्रीमंत छत्रपति शिवाजी महाराज की कुलदेवी मां तुलजा भवानी हैं। शिवाजी महान उन्हीं की उपासना करते रहते थे। मान्यता है कि शिवाजी को खुद देवी मां ने प्रकट होकर तलवार प्रदान की थी। अभी यह तलवार लंदन के संग्रहालय में रखी हुई है।
लंबी बीमारी के चलते 1680 में वीर छत्रपति शिवाजी ने दम तोड़ दिया और उनके साम्राज्य को उनके बेटे संभाजी ने संभाल लिया। गौ-ब्राह्मण प्रतिपालक, यवन-परपीडक, प्रौढ़ प्रताप पुरंधर, क्षत्रिय कुलावातंश, राजाधिराज, महाराज, योगीराज, श्री श्री श्री छत्रपति शिवाजी महाराज की जय…जय भवानी। जय शिवाजी।