Shaniwar Wada शनिवार वाडा पुणे

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महाराष्ट्र के पुणे शहर का शनिवार वाडा shaniwar wada

शनिवार वाडा पुणे  Shaniwar Wada – शनिवार वाडा भारत के महाराष्ट्र राज्य के पुणे शहर में बनी एक ऐतिहासिक किलाबंदी है। 18 वी शताब्दी में मराठा साम्राज्य के विस्तार के समय यह किला मराठा साम्राज्य के मुख्य किलो में से एक था।

 

1828 में अस्पष्टिकृत आग की वजह से किला पूरी तरह से जल गया था, लेकिन आज भी यात्रियों के लिए यह खुला रहता है। आज भी इसका बाहरी और आंतरिक रूप हमें किले में देखने मिलता है।

 

शनिवार वाडा असल में मराठा साम्राज्य के पेशवा की सात मंजिला कैपिटल बिल्डिंग है। कहा जाता है की उस समय शनिवार वाडा इतिहास की सबसे कलात्मक और आकर्षक रचनाओ में से एक था।

 

इस किले का निर्माण पहले केवल पत्थरो का उपयोग करके ही किया जा रहा था। लेकिन निचली मंजिल पूरी होने के बाद राजा शिवा ने उन्हें बचा हुआ महल ईंटो से बनाने का आदेश दिया। क्योकि उनके अनुसार केवल एक राजा का ही पूरी तरह से पत्थरो से बना महल हो सकता है।

 

कहा जाता है की शनिवार वाडा का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद इसपर ब्रिटिश सेना ने आक्रमण भी किया था, आक्रमण में शनिवार वाडे की उपरी छः मंजिलो को जलाकर ध्वस्त कर दिया गया और इस वाडे की केवल निचली मंजिल बची हुई है। जिन्हें ब्रिटिश तोपखानो से सजाया गया है।

 

वर्तमान में शनिवार वाडा का केवल मुख्य बाहरी भाग ही बचा हुआ है जिसे हम आज भी पुणे शहर में जाकर देख सकते है।

 

जून 1818 में पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अपनी गद्दी त्यागकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सर जॉन मल्कोल्म को सौप दी थी और राजनीतिक निर्वासन कर वे कानपूर के पास चले गये, जो वर्तमान भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में आता है।

 

27 फरवरी 1828 को महल के भीतर भीषण आग लग गयी थी। तक़रीबन 7 दीनो तक यह आग पूरी तरह से शांत नही हुई थी। आग में पूरा महल ध्वस्त हो गया था, इसके बाद केवल महल का मुख्य द्वार, गहरे फाउंटेन और पत्थरो की दीवारे ही महल में बची थी।

निर्माण कार्य:

 

छत्रपति शाहू के प्रधान मंत्री पेशवा बाजीराव प्रथम ने 10 जनवरी 1730 को शनिवार के दिन इसका उद्घाटन किया था। इसका नाम शनिवार वाडा मराठी शब्द शनिवार (दिन) और वाडा (रहने की जगह) के आधार पर रखा गया।

 

शनिवार वाडा का निर्माण कार्य 1732 में पूरा हुआ, उस समय इसे बनाने में तक़रीबन 16,110 रुपये लगे थे। उस समय यह रकम करोडो, अरबो से कम नही थी।

 

इस वाडे का उद्घाटन हिन्दू परंपराओ के अनुसार 22 जनवरी 1732 को किया गया, 22 जनवरी को शनिवार का ही दिन था।

 

इसके बाद पेशवाओ ने शनिवार वाडा में और भी बहुत सी चीजो का निर्माण किया, जैसे की वाटर फाउंटेन और जलाशय। यह वाडा पुणे के क़स्बा पेठ में मुला-मुठा नदी के पास स्थित है।

प्रसिद्ध संस्कृति:

 

• 2008 में शनिवार वाडा को दी अमेजिंग रेस एशिया 3 में दिखाया गया था। यह एक प्रकार का खेल शो है, जिसमे हर टीम के एक सहभागी को वाडे के भीतर 50 लोगो द्वारा पहने गये फेटो में से किसी एक सही फेटे को पहचानना होता है।

 

• शनिवार वाडा को 2015 की ऐतिहासिक ड्रामा फिल्म बाजीराव मस्तानी में भी दिखाया गया है।

shaniwar wada की प्रेतवाधित कहानी (डरावनी कहानी):

 

अमावस की रात को यह किला भुत-प्रेतों की जगह में परिवर्तित हो जाता है। स्थानिक लोगो के अनुसार अक्सर उन्हें रात में यहाँ “काका मला वाचवा” की आवाज सुनाई देती है।

 

कहा जाता है की यहाँ शासन करने करने वाले अंतिम शासक की जब हत्या की जा रही थी तो यही शब्द उनके मुँह से निकले थे। यही कहानी हमें शनिवार वाडा के बारे में पुणे में सुनने मिलती है।

shaniwar wada किले की संरचना (Shaniwar Wada Fort Architecture)

 

शनिवार वाडा किले में प्रवेश हेतु ५ दरवाजे बने हुए हैं, जिन्हें विभिन्न नाम दिए गए है.

दिल्ली दरवाज़ा (Dilli Darwaza or Delhi Gate) –

 

यह किले का मुख्य द्वार है. यह उत्तर दिशा में दिल्ली की ओर खुलता है. इस कारण इसे ‘दिल्ली दरवाज़ा’ भी कहा जाता है. उत्तर में दिल्ली की ओर मुख कर यह द्वार बनाने के पीछे पेशवा बाजीराव की मुग़ल साम्राज्य की समाप्ति की महत्वाकांक्षा भी मानी जाती है. यह दरवाज़ा काफ़ी ऊँचा और चौड़ा है. इतना कि पालकी सहित हाथी को यहाँ से निकाला जा सकता है. इस दरवाज़े पर दोनों पलड़ों पर ७२ नुकीले कीलें लगी हुई हैं, जिनकी लंबाई १२ इंच है. यह शत्रु के हाथियों के हमले से रक्षा के लिए दरवाज़े पर लगाई गई हैं. दरवाज़े के दाहिने पलड़े पर सैनिकों के आने-जाने के लिए एक छोटा द्वार बना हुआ है. ये दरवाज़ा काफ़ी छोटा है, जिससे कोई सेना आसानी और जल्दी से इसमें प्रवेश नहीं कर सकती. ऐसा सुरक्षा की दृष्टि से किया गया था.

मस्तानी दरवाज़ा या अलीबहादुर दरवाज़ा (Mastani Darwaza or Mastani Gate or Alibahadur Gate) –

 

यह दरवाज़ा उत्तर दिशा में खुलता है. पेशवा बाजीराव की दूसरी पत्नि मस्तानी बाहर जाते समय इसी दरवाज़े का इस्तेमाल करती थी. इस कारण इस दरवाज़े का नाम ‘मस्तानी दरवाज़ा’ पड़ा. इसे ‘अलीबहादुर दरवाज़ा’ का नाम भी दिया गया है.

खिड़की दरवाज़ा (Khidki Darwaza or Window Gate) –

 

यह दरवाज़ा पूर्व दिशा में खुलता है. खिड़की बनी होने के कारण इसका नाम ‘खिड़की दरवाज़ा’ पड़ा.

गणेश दरवाज़ा (Ganesh Darwaza or Ganesh Gate) –

 

यह दरवाज़ा दक्षिण-पूर्व दिशा में खुलता है. किले परिसर में बने गणेश महल के नज़दीक होने के कारण इसका नाम ‘गणेश दरवाज़ा’ पड़ा. इस दरवाज़े का उपयोग महिलायें ‘क़स्बा गणपति मंदिर’ (Kasba Ganpati Temple) में दर्शन के लिए आते समय करती थी.

जम्भूल दरवाज़ा या नारायण दरवाज़ा (Zambhul Darwaza or narayan Darwaza और Narayan Gate) –

 

जम्भूल दरवाज़ा दक्षिण दिशा में खुलता है. इसका उपयोग दासियाँ किले में आने-जाने के लिए किया करती थी. इस दरवाज़े का दूसरा नाम ‘नारायणराव दरवाज़ा’ नारायण राव की मृत्यु के उपरांत दिया गया. इसी दरवाज़े से उनका शव किले के बाहर ले जाया गया था.
शनिवार वाडा की मुख्य इमारत के निर्माण के बाद समय-समय पर किले में कई अन्य इमारतों, जलाशय और लोटस फाउंटेन का निर्माण करवाया गया.

 

किले की मुख्य इमारत ७ मंजिला थी, जिसकी सबसे ऊंची मंजिल पर पेशवाओं का निवास था, जिसे ‘मेघादम्बरी’ (Meghadambari) कहा जाता था. कहा जाता है कि यहाँ से देखने पर १७ किलोमीटर दूर आनंदी में स्थित संत ज्ञानेश्वर मंदिर के शिखर दिखाई पड़ता था. १८२८ में किले में लगी आग में यह इमारत भी नहीं बची. वर्तमान में इसका पत्थर से निर्मित आधार शेष है. इसके अतिरिक्त कुछ छोटी इमारत शेष हैं.

 

किले की अन्य प्रमुख इमारतों में ३ इमारतें ‘थोरल्या रायांचा दीवानखाना’ (Thorlya Rayancha Diwankhana), ‘नाचचा दीवानखाना’ (Naachacha Diwankhana) और ‘जूना अरसा महल’ (Old Mirror Hall) सम्मिलित थी. ये सभी इमारतें १८२८ में किले में लगी आग में नष्ट हो गई. आज उनके अवशेष मात्र देखे जा सकते हैं.

लोटस फाउंटेन (Lotus Fountain) –

 

शनिवार वाडा का मुख्य आकर्षण कमल के आकार का फाउंटेन है, जो ‘लोटस फाउंटेन’ या ‘हज़ारी कारंजे’ (Hazari Karanje) के नाम से जाना जाता है. इस फाउंटेन में कमल के फूल का आकार लिए हुए १६ पंखुड़ियाँ बनी हुई है, जो कलात्मकता का बेजोड़ नमूना है. एक समय में यहाँ १०० नर्तक नृत्य करते थे. इसकी एक कोने में संगमरमर की बनी गणपति की प्रतिमा स्थापित थी. फाउंटेन के साथ ही यहाँ फूलों का सुंदर बगीचा था.

शनिवार वाडा  Shaniwar Wada Fort History In Hindi

शनिवार वाडा किले की रहस्यमयी कहानी (Shaniwar Wada Fort Haunted Story)

पेशवा बाजीराव प्रथम के दो पुत्र थेबालाजी बाजीराव, जो नाना साहेब के नाम से भी जाने जाते हैं और रघुनाथ राव. बाजीराव प्रथम की मृत्यु के उपरांत नाना साहेब पेशवा बने.

पेशवा नाना साहेब के तीन पुत्र थे – शनिवार वाडा

 

१. विशव राव

 

२. महादेव राव

 

३. नारायण राव

 

पानीपत की तीसरे युद्ध में नाना साहेब के प्रथम पुत्र विशव राव की मृत्यु हो गई. जब नाना साहेब पेशवा की मृत्यु हुई, तो उनके द्वितीय पुत्र महादेव राव गद्दी पर बैठे. लेकिन २७ वर्ष की आयु में ही उनकी मृत्यु हो गई. उनकी मृत्यु के बाद पेशवा नाना साहेब के तीसरे पुत्र नारायण राव को गद्दी पर बैठाया गया. जब नारायण राव गद्दी पर बैठे, तब उनकी उम्र मात्र १७ वर्ष थी.

 

१७ वर्ष के बालक नारायण राव का गद्दी पर बैठना उनके काका (चाचा) रघुनाथ राव और काकी (चाची) आनंदी बाई को खल रहा था. रघुनाथ राव स्वयं पेशवा बनना चाहते थे. वह पहले पेशवा महादेवराव की हत्या का प्रयास कर चुके थे, जिससे नारायणराव वाकिफ थे. इस कारण वे भी अपने काका को पसंद नहीं करते थे और हमेशा शक की दृष्टि से देखते थे.

 

दोनों के रिश्ते तब और बिगड़ गए जब सलाहकारों के भड़काने पर पेशवा नारायणराव ने रघुनाथ राव को अपने घर पर नज़रबंद कर दिया. उनकी काकी आनंदी बाई इस बात पर उनसे बहुत नाराज़ हो गई.

 

नज़रबंद होने के बाद रघुनाथ राव ने अपने बचाव के लिए शिकारी कबीलियाई गार्दी (Gardi) के मुखिया सुमेंद्र सिंह गार्दी को एक पत्र भेजा, जिसमें लिखा था – ‘नारायणराव ला धारा’ जिसका अर्थ था – ‘नारायण राव को कैद कर लो’. ये पत्र पहले रघुनाथ राव की पत्नी आनंदी बाई के पास पहुँचा और मौका देखते हुए उसने घिनौनी चाल चलते हुए उस पत्र के शब्द बदल दिए और ‘नारायणराव ला धारा’ को ‘नारायणराव ला मारा’ कर दिया, जिसका अर्थ था –‘नारायणराव को मारो’.

 

यह पत्र मिलते ही सुमेंद्र सिंह गार्दी के लोगों ने शानिवाडा किले पर हमला कर दिया. जब वे सारी बाधा पार कर पेशवा नारायणराव के कक्ष में पहुँचे, तो नारायण राव उन्हें देखकर अपने काका के कक्ष की ओर ये कहते हुए भागा – ‘काका माला वाचवा’ अर्थात् ‘चाचा मुझे बचाओ’. किंतु उसके अपने काका तक पहुँचने के पहले ही गार्दियों ने उसे पकड़कर मौत के घाट उतार लिया.

 

इस घटना के संबंध में इतिहासकारों में मतभेद है. कुछ इतिहासकार उपरोक्त घटना को मानते है. कईयों का कहना है कि नारायणराव अपने काका के सामने ही स्वयं को बचाने के लिए याचना करता रहा, किंतु रघुनाथराव ने कुछ नहीं किया और गार्दियों ने उसे मार कर उसकी लाश के टुकड़े-टुकड़े कर नदी में बहा दिये.

 

लोगों का कहना है कि शनिवार वाडा में नारायणराव की आत्मा भटकती है और उसके द्वारा कहे गए अंतिम शब्द ‘काका माला वाचवा’ आज भी किले में सुनाई पड़ते है. इस कारण इस किले को भुतहा (haunted) माना जाता है.

 

२७ फ़रवरी १८२३ को शनिवार वाडा किले में आग लग गई. ७ दिनों तक इस आग में काबू नहीं पाया जा सका. इस आग में किले का अधिकांश हिस्सा जल गया. आज इसके अवशेष शेष हैं.

किले का इतिहास – Shaniwar Wada History in Hindi शनिवार वाडा पुणे

 

शनिवार वाडा असल में मराठा साम्राज्य के पेशवा की सात मंजिला महल है। कहा जाता है की उस समय शनिवार वाडा इतिहास की सबसे कलात्मक और आकर्षक रचनाओ में से एक था। इस किले का निर्माण पहले केवल पत्थरो का उपयोग करके ही किया जा रहा था।

 

शनिवार वाडा किला का निर्माण राजस्थान के ठेकेदारो ने किया था जिन्हे की काम पूर्ण होने के बाद पेशवा ने नाईक की उपाधि से नवाज़ा था। इस किले में लगी टीक की लकड़ी जुन्नार के जंगलो से, पत्थर चिंचवाड़ की खदानों से तथा चुना जेजुरी की खदानों से लाया गया था।

 

इसके बाद पेशवाओ ने शनिवार वाडा में और भी बहुत सी चीजो का निर्माण किया, जैसे की वाटर फाउंटेन और जलाशय। यह वाडा पुणे के क़स्बा पेठ में मुला-मुठा नदी के पास स्थित है।

शनिवार वाडा का निर्माण कार्य पूरा होने के बाद इसपर ब्रिटिश सेना ने आक्रमण भी किया था, जिससे महल को बहुत हानि पहुंची थी। वर्तमान में शनिवार वाडा का केवल मुख्य बाहरी भाग ही बचा हुआ है जिसे हम आज भी पुणे शहर में जाकर देख सकते है।

जून 1818 में पेशवा बाजीराव द्वितीय ने अपनी गद्दी त्यागकर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सर जॉन मल्कोल्म को सौप दी थी और राजनीतिक निर्वासन कर वे कानपूर के पास चले गये, जो वर्तमान भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में आता है।

 

इस महल में 27 फ़रवरी 1828 को अज्ञात कारणों से भयंकर आग लगी थी आग को पूरी तरह बुझाने में सात दिन लग गए थे। इस से किले परिसर में बनी कई इमारते पूरी तरह नष्ट हो गई थी। उनके अब केवल अवशेष बचे है। अब यदि हम इस किले की संरचना की बात करे तो किले में प्रवेश करने के लिए पांच दरवाज़े है।

शनिवार वाडा पुणे नारायण राव की हत्या और उनकी आत्मा Shaniwar Wada (Narayan Rao) Story in Hindi

 

ऐसी मान्यता है क‌ि बाजीराव के बाद इस महल में राजनीत‌िक उथल-पुथल का दौर शुरु हो गया था। इसी राजनीत‌िक दांव-पेंच और सत्ता की लालच में 18 साल की उम्र में नारायण राव की हत्या इस महल में कर दी गई थी। कहते हैं आज भी नारायण राव अपने चाचा राघोबा को पुकारते हैं ‘काका माला बचावा’। नारायण राव की हत्या क्यों और क‌िस कारण से हुई उसकी एक बड़ी दर्दनाक कहानी है।

 

पेशवा नाना साहेब के तीन पुत्र थे विशव राव, महादेव राव और नारायण राव। अपने दोनों भाईयों की मृत्यु के बाद नारायण राव को पेशवा बनाया गया। नारायण राव को पेशवा तो बना द‌िया गया लेक‌िन उम्र कम होने की वजह से रघुनाथराव यानी राघोबा को उनका संरक्षक बनाया गया और शासन संचालन का अध‌िकार भी राघोबा के हाथों में ही रहा। लेक‌िन इस व्यवस्‍था से राघोबा और उनकी पत्नी आनंदीबाई खुश नहीं थी वह सत्ता पर पूर्ण अध‌िकार चाहते थे।

 

राघोबा की इस हसरत की भनक नारायण राव को लग गई और दोनों पक्ष के बीच दूरियां बढ़ने लगी। इस तरह दोनों एक दूसरे को शक की नज़र से देखते थे। हालात तब और भी विकट हो गए जब दोनों के सलाहकारों ने दोनों को एक दूसरे के विरुद्ध भड़काया। इसका परिणाम यह हुआ की नारायण राव ने अपने काका को घर में ही नज़रबंद करवा दिया।

इससे आनंदीबाई और भी ज्यादा नाराज़ हो गई। उधर राघोबा ने नारायण राव को काबू में करने का एक उपाय सोचा। उनके साम्राज्य में ही भीलों का एक शिकारी कबीला रहता था जो की गार्दी कहलाते थे। वो बहुत ही मारक लड़ाके थे। नारायण राव के साथ उनके सम्बन्ध खराब थे लेकिन राघोबा को वो पसंद करते थे। इसी का फायदा उठाते हुए राघोबा ने उनके मुखिया सुमेर सिंह गार्दी को एक पत्र भेजा जिसमे उन्होंने लिखा ‘नारायण राव ला धारा’ जिसका मतलब था नारायण राव को बंदी बनाओ। लेकिन आनंदीबाई को यहाँ एक अच्छा मौक़ा नज़र आया और उसने पत्र का एक अक्षर बदल दिया और कर दिया ‘नारायण राव ला मारा’ जिसका मतलब था नारायण राव को मार दो।

पत्र मिलते ही गार्दियों के एक समूह ने रात को घात लगाकर महल पर हमला कर दिया। वो रास्ते की हर बाधा को हटाते हुए नारायण राव के कक्ष की और बढे। जब नारायण राव ने देखा की गार्दी हथियार लेकर खून बहाते हुए उसकी तरफ आ रहे है तो वो अपनी जान बचाने के लिए अपने काका के कक्ष की और “काका माला वचाव” (काका मुझे बचाओ) कहते हुए भागा। लेकिन वह पहुँचने से पहले ही वो पकड़ा गया और उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए गए।

 

हालाँकि इतिहासकारो में थोड़ा सा मतभेद है कुछ उस बात का समर्थन करते है जो की हमने ऊपर लिखी जबकि कुछ का कहना है की नारायण राव अपने काका के सामने अपनी जान बचाने की गुहार करता रहा पर उसके काका ने कुछ नहीं किया और गार्दी ने राघोबा की आँखों के सामने उसके टुकड़े टुकड़े कर दिए। लाश के टुकड़ो को बर्तन में भरकर रात को ही महल से बाहर ले जाकर नदी में बहा दिया गया।

 

स्थानीय लोग कहते हैं कि अमावस्या की रात अब भी एक दर्द भरी रात आवाज आती है, जो बचाओ-बचाओं पुकारती है। ये आवाज उसी राजकुमार की है, जिसकी हत्या करवाई गई थी।

शनिवार वाडा समय और एंट्री फीस (Shaniwar Wada Fort Timing and Entry Fees)

 

शनिवार वाडा सुबह ८:०० बजे से शाम ६:३० बजे तक खुला रहता है. भारतीयों (Indian) के लिए प्रवेश शुल्क ५ रूपये प्रति व्यक्ति और विदेशियों (Foreigners) के लिए १२५ रुपये प्रति व्यक्ति है. लाइट और साउंड शो के लिए अलग चार्जेज हैं.

शनिवार वाडा लाइट एंड साउंड शो (Shaniwar Wada Fort Light and Shound show)

 

शनिवार वाडा किले में प्रतिदिन शाम को लाइट एंड साउंड शो आयोजित होता है. १.२५ करोड़ के खर्च पर यहाँ इस शो का सेट-अप किया गया, ताकि लोगों को मराठाओं के समृद्ध इतिहास की जानकारी दी जा सके. प्रति शाम को ७:१५ से ८:१० तक मराठी में एवं ८:१५ से ९:१० तक अंग्रेजी भाषा में यह शो आयोजित होता है. इसके टिकट की कीमत २५/- प्रति व्यक्ति है, जो शाम ६:३० से लेकर ८:३० बजे तक ख़रीदे जा सकते हैं. इन टिकटों की advance booking नहीं होती. ये spot पर ही ख़रीदे जा सकते हैं.

शनिवार वाडा के पर्यटकों के लिए टिप्स (Tips For The Visitors Of Shaniwar Wada Fort)

 

शनिवार घूमने के लिए काफ़ी चलना पड़ता है. इसलिए आरामदायक जूते पहनना ज़रूरी है.
जुलाई से लेकर अप्रैल तक का समय मौसम के हिसाब से शनिवार वाडा विजिट करने के लिए बेस्ट है.
खाने-पीने की कोई व्यवस्था किले के भीतर नहीं है. इसलिए अपने साथ खाने-पीने का सामान लेकर चलें.
यह की ऑथोरिटी किले की साफ़-सफ़ाई को लेकर सख्त है. किले के परिसर में गंदगी फ़ैलाने पर जुर्माने का प्रावधान है.

पुणे देखिये पुणे के नजदीक पर्यटन यहाँपे

 

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