हरतालिका पूजा की पूरी जानकारी

हरतालिका पूजा

 

हरतालिका पूजा की पूरी जानकारी

 

हरतालिका पूजा की पूरी जानकारी : हरतालिका व्रत को हरतालिका तीज या तीजा भी कहते हैं। यह व्रत श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हस्त नक्षत्र के दिन होता है। इस दिन कुमारी और सौभाग्यवती स्त्रियाँ गौरी-शंकर की पूजा करती हैं।

 

सौभाग्यवती स्त्रियां अपने सुहाग को अखण्ड बनाए रखने और अविवाहित युवतियां मन मुताबिक वर पाने के लिए हरितालिका तीज का व्रत करती हैं। सर्वप्रथम इस व्रत को माता पार्वती ने भगवान शिव शंकर के लिए रखा था। इस दिन विशेष रूप से गौरी−शंकर का ही पूजन किया जाता है। इस दिन व्रत करने वाली स्त्रियां सूर्योदय से पूर्व ही उठ जाती हैं और नहा धोकर पूरा श्रृंगार करती हैं। पूजन के लिए केले के पत्तों से मंडप बनाकर गौरी−शंकर की प्रतिमा स्थापित की जाती है। इसके साथ पार्वती जी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। रात में भजन, कीर्तन करते हुए जागरण कर तीन बार आरती की जाती है और शिव पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है।

हरितालिका नाम पड़ने के पीछे का कारण

 

हरतालिका दो शब्दों से बना है, हरित और तालिका. हरित का अर्थ है हरण करना और तालिका अर्थात सखी. यह पर्व भाद्रपद की शुक्ल तृतीया को मनाया जाता है, जिस कारण इसे तीज कहते है. इस व्रत को हरितालिका इसलिए कहा जाता है, क्योकि पार्वती की सखी (मित्र) उन्हें पिता के घर से हरण कर जंगल में ले गई थी.

 

पूर्वकाल में जब दक्ष कन्या सती पिता के यज्ञ में अपने पति भगवान शिव की उपेक्षा होने पर भी पहुंच गई, तब उन्हें बड़ा अपमान सहना पड़ा। जिसके कारण वह इतनी दुखी हुई कि खुद को योगाग्रि से भस्म कर दिया। जो बाद में आदिशक्ति मैना और हिमालय की तपस्या से खुश होकर उनके घर में उनक् घर में पुत्री के रुप में जन्म लिया। जिनका नाम पार्वती रखा गया।

 

माना जाता है कि उनके पुर्नजन्म की स्मृति उनके दिमाग में बनी रही। बाल्यावस्था में ही पार्वती भगवान शंकर की आराधना करने लगी और उन्हें पति रूप में पाने के लिए घोर तप करने लगीं। यह देखकर उनके पिता हिमालय बहुत दु:खी हुए। हिमालय ने पार्वती का विवाह भगवान विष्णु से करना चाहा, लेकिन पार्वती भगवान शंकर से विवाह करना चाहती थी।
पार्वती ने यह बात अपनी सखी को बताई। वह सखी पार्वती को एक घने जंगल में ले गई। पार्वती ने जंगल में मिट्टी का शिवलिंग बनाकर कठोर तप किया, जिससे भगवान शंकर प्रसन्न हुए। उन्होंने प्रकट होकर पार्वती से वरदान मांगने को कहा। पार्वती ने भगवान शंकर से अपनी धर्मपत्नी बनाने का वरदान मांगा, जिसे भगवान शंकर ने स्वीकार किया। इस तरह माता पार्वती को भगवान शंकर पति के रूप में प्राप्त हुए।

 

इसी तरह इसका नाम हरितालिका तीज पड़ा। जिसके कारण इस दिन कुवांरी कन्याएं पार्वती मां की तरह पूजा-पाठ कर अच्छ वर की कामना करती हैं।

हरतालिका पूजा की पूरी जानकारी

व्रत की अनिवार्यता

 

इस व्रत की पात्र कुमारी कन्यायें या सुहागिन महिलाएं दोनों ही हैं परन्तु एक बार व्रत रखने बाद जीवन पर्यन्त इस व्रत को रखना पड़ता है। यदि व्रती महिला गंभीर रोगी हालात में हो तो उसके वदले में दूसरी महिला या उसका पति भी इस व्रत को रख सकने का विधान है।ज्यादातर यह व्रत उत्तरप्रदेश और बिहार के लोग मनातें हैं. महाराष्ट्र में भी इस व्रत का पालन किया जाता है क्योंकि अगले दिन ही गणेश चतुर्थी के दिन गणेश स्थापना की जाती है

हरतालिका तीज पूजा विधि

 

हरतालिका तीज पर सुबह और शाम दोनों समय की पूजा को शुभ माना जाता है. हरतालिका पर पूजा करने से पहले भक्त स्नान आदि करने के बाद नए वस्त्र पहन ले. फिर मिट्टी से बनी शिव जी औ मां पार्वती की मूर्ति का पूजन करें. अगर ऐसा नहीं कर पा रहे हैं तो दोनों का एक फोटो रखकर भी पूजा कर सकते हैं. पूजा के लिए एक नया कपड़ा बिछाकर उसपर मूर्ति का फोटो रखें और पूजन शुरू करें. सबसे पहले पूजा का संकल्प लें जिसके बाद मां पार्वती और शिव जी को चंदन अर्पित करें. साथ ही धूप, दीप, फूल, मिठाई और बेलपत्र आदि अर्पित करें. जिसके बाद हरतालिका तीज की व्रत कथा सुने या पढ़े.

हरतालिका तीज की पूजन सामग्री :-

 

हरतालिका पूजन के लिए – गीली काली मिट्टी या बालू रेत। बेलपत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल एवं फूल, अकांव का फूल, तुलसी, मंजरी, जनैव, नाडा, वस्त्र, सभी प्रकार के फल एवं फूल पत्ते, फुलहरा (प्राकृतिक फूलों से सजा)।

 

पार्वती मां के लिए सुहाग सामग्री– मेहंदी, चूड़ी, बिछिया, काजल, बिंदी, कुमकुम, सिंदूर, कंघी, माहौर, बाजार में उपलब्ध सुहाग पुड़ा आदि। श्रीफल, कलश, अबीर, चन्दन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम, दीपक, घी, दही, शक्कर, दूध, शहद पंचामृत के लिए।

 

इस पर्व को पर्यावरण से जोड़कर भी देखा जाता है, क्योंकि इस दिन महिलाएं सावन के बाद आई नई 16 तरह की पत्तियों को शिवजी को चढ़ाकर अपने घर में हर प्रकार की वृद्धि का वर मांगती हैं।

जानिए, कौन सी पत्तियां चढ़ाएं, हर पत्ती से जुड़ा है विशेष आशीर्वाद

 

बिल्वपत्र : सौभाग्य
तुलसी : चरित्र
जातीपत्र : संतान
सेवंतिका :
दांपत्य सुख
बांस : वंश वृद्धि
देवदार पत्र : ऐश्वर्य
चंपा : सौंदर्य और सेहत
कनेर : यश और सुख

 

अगस्त्य : वैभव
भृंगराज : पराक्रम

 

धतूरा : मोक्ष प्राप्ति
आम के पत्ते : मंगल कार्य
अशोक के पत्ते : शांति प्रिय जीवन
पान के पत्ते :
परस्पर प्रेम में वृद्धि
केले के पत्ते : सफलता
शमी के पत्ते धन और समृद्धि

 

इस प्रकार 16 प्रकार की पत्तियां से षोडश उपचार पूजा करनी चाहिए।

हरतालिका तीज पर क्या करें

 

निराहार रहकर व्रत करें।
रात्रि जागरण कर भजन करें।
बालू के शिवलिंग की पूजा करें।
सखियों सहित शंकर-पार्वती की पूजा रात्रि में करें।
पत्ते उलटे चढ़ाना चाहिए तथा फूल व फल सीधे चढ़ाना चाहिए।
हरतालिका तीज की कथा गाना अथवा श्रवण करें।

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हरतालिका तीज व्रत कथा

 

पौराणिक कथा के अनुसार, मां पार्वती कई जन्मों से शिव जी को पति के रूप में पाना चाहती थी. इसके लिए मां पार्वती ने हिमालय पर्वत के गंगा तट पर बाल अवस्था में अधोमुखी होकर तपस्या भी की. मां पार्वती ने इस तपस्या के दौरान अन्न और जल ग्रहण नहीं किया. इस दौरान उन्होंने सिर्फ सूखे पत्ते चबाकर ही पूरा तप किया. माता को इस अवस्था में देखकर उनके परिजन बहुत दुखी थे.

 

एक दिन नारद मुनि विष्णु जी की ओर से पार्वती माता के विवाह का प्रस्ताव लेकर उनके पिता के पास गए. उनके पिता तुंरत मान गए लेकिन जब मां पार्वती को यह ज्ञात हुआ तो उनका मन काफी दुखी हुआ और वे रोने लगीं. मां पार्वती को इस पीड़ा से गुजरता देख एक सखी ने उनकी माता से कारण पूछा. देवी पार्वती की माता ने बताया कि पार्वती शिव जी को पाने के लिए तप कर रही है लेकिन उनके पिता विवाह विष्णु जी से करना चाहते हैं. पूरी बात जानने के बाद सखी ने मां पार्वती को एक वन में जाने की सलाह दी.

 

मां पार्वती ने सखी की सलाह मानते हुए वन में जाकर शिव जी तपस्या में लीन हो गईं. भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीया को माता पार्वती ने रेत से शिवलिंग बनाया और शिव स्तुति करने लगी. मां पार्वती ने रात भर शिव जी का जागरण किया. काफी कठोर तपस्या के बाद शिव जी ने मां पार्वती को दर्शन देकर उन्हें पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया.

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हरतालिका आरती-Hartalika Aarti

 

जय देवी हरतालिके| सखी पार्वती अबिके|
आरती ओवळीतें| ज्ञानदीपकळिके||
हर अर्धंगी वससी| जासी यज्ञा माहेरासी|
तेथें अपमान पावसी| यज्ञकुंडींत गुप्त होसी||
जय देवी हरतालिके| सखी पार्वती अबिके|
रिघसी हिमाद्रीच्या पोटी| कन्या होसी तू गोमटी|
उग्र तपक्ष्चर्या मोठी| आचरसी उठाउठी||
जय देवी हरतालिके| सखी पार्वती अबिके|
तापपंचाग्रिसाधनें| धूम्रपानें अधोवदनें|
केली बहु उपोषणें| शंभु भ्रताराकारणें||
जय देवी हरतालिके| सखी पार्वती अबिके|
लीला दाखविसी दृष्टी| हें व्रत करिसी लोकांसाठी|
पुन्हा वरिसी धूर्जटी| मज रक्षावें संकटीं||
जय देवी हरतालिके| सखी पार्वती अबिके|
काय वर्ण तव गुण| अल्पमति नारायण|
मातें दाखवीं चरण| चुकवावें जन्म मरण||
जय देवी हरतालिके| सखी पार्वती अबिके|
जय देवी हरतालिके| सखी पार्वती अबिके|
आरती ओवळीतें| ज्ञानदीपकळिके||

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