गायत्री मंत्र अर्थ सहित व्याख्या
Gayatri Mantra with Meaning in Hindi
शास्त्रों में गायत्री की महिमा के पवित्र वर्णन मिलते हैं। गायत्री मंत्र तीनों देव, बृह्मा, विष्णु और महेश का सार है। गीता में भगवान् ने स्वयं कहा है ‘गायत्री छन्दसामहम्’ अर्थात् गायत्री मंत्र मैं स्वयं ही हूं।
गायत्री मंत्र को हिन्दू धर्म में सबसे महत्वपूर्ण मंत्र माना जाता है.
यह मंत्र हमें ज्ञान प्रदान करता है| इस मंत्र का मतलब है – हे प्रभु, क्रिपा करके हमारी बुद्धि को उजाला प्रदान कीजिये और हमें धर्म का सही रास्ता दिखाईये. यह मंत्र सूर्य देवता के लिये प्रार्थना रूप से भी माना जाता है.
मंत्र
ॐ भूर्भुवः स्वः
तत्सवितुर्वरेण्यं
भर्गो देवस्यः धीमहि
धियो यो नः प्रचोदयात्
गायत्री मंत्र के प्रत्येक शब्द की व्याख्या (Gayatri Mantra Meaning by words in Hindi)
ॐ = प्रणव (परब्रह्मा का अभिवाच्य शब्द)
भूर = मनुष्य को प्राण प्रदाण करने वाला
भुवः = दुख़ों का नाश करने वाला(अंतरिक्ष लोक)
स्वः = सुख़ प्रदाण करने वाला(स्वर्गलोक)
तत = वह ( परमात्मा अथवा ब्रह्म)
सवितुर = सूर्य की भांति उज्जवल(ईश्वर अथवा सृष्टि कर्ता)
वरेण- ्यं = सबसे उत्तम (पूजनीय)
भर्गो- = कर्मों का उद्धार करने वाला (अज्ञान तथा पाप निवारक)
देवस्य- = प्रभु (ज्ञान स्वरुप भगवान का)
धीमहि- = आत्म चिंतन के योग्य (ध्यान)
धियो = बुद्धि
यो = जो
नः = हमारी
प्रचो- दयात् = हमें शक्ति दें (प्रार्थना)(प्रकाशित करें)
अर्थ:
हम ईश्वर की महिमा का ध्यान करते हैं, जिसने इस संसार को उत्पन्न किया है, जो पूजनीय है, जो ज्ञान का भंडार है, जो पापों तथा अज्ञान की दूर करने वाला हैं- वह हमें प्रकाश दिखाए और हमें सत्य पथ पर ले जाए।