History of parikrama in hindi प्रदक्षिणा में छिपा इतिहास
यह परिक्रमा केवल पारंपरिक आधार पर ही नहीं की जाती बल्कि इसे करने के और भी कारण हैं। कारण जानने से पहले जरूरी है परिक्रमा करने के लाभ जानना लेकिन इससे भी अति आवश्यक है परिक्रमा करने के पीछे का इतिहास। हिन्दू धार्मिक इतिहास में दी गए एक कथा हमें परिक्रमा करने का कारण भी बताती है।
माता पार्वती का आदेश
एक बार भगवान शंकर की अर्धांगिनी माता पार्वती द्वारा अपने पुत्रों कार्तिकेय तथा गणेश को सांसारिक ज्ञान प्राप्त करने के लिए पृथ्वी का एक चक्कर लगाकर उनके पास वापस लौटने का आदेश दिया गया। जो भी पुत्र इस परिक्रमा को पूर्ण कर माता के पास सबसे पहले पहुंचता वही इस दौड़ का विजेता होता तथा उनकी नजर में सर्वश्रेष्ठ कहलाता।
कार्तिकेय और गणेश
यह सुन कार्तिकेय अपनी सुंदर सवारी मोर पर सवार हुए तथा पृथ्वी का चक्कर लगाने के लिए निकल पड़े। उन्हें यह भ्रमण समाप्त करने में युग लग गए लेकिन दूसरी ओर गणेश द्वारा माता की आज्ञा को पूरा करने का तरीका काफी अलग था जिसे देख सभी हैरान रह गए।
भगवान गणेश ने की परिक्रमा
गणेश ने अपने दोनों हाथ जोड़े तथा माता पार्वती के चक्कर लगाना शुरू कर दिया। जब कार्तिकेय पृथ्वी का चक्कर लगाकर वापस लौटे और गणेश को अपने सामने पाया तो वह हैरान हो गए। उन्हें अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था कि कैसे गणेश उनसे पहले दौड़ का समापन कर सकते हैं।
माता पार्वती ही हैं संसार
बाद में प्रभु गणेश से जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि उनका संसार तो स्वयं उनकी माता हैं, इसलिए उन्हें ज्ञान प्राप्ति के लिए विश्व का चक्कर लगाने की आवश्यकता नहीं है। इस पौराणिक कथा में भगवान गणेश की सूझबूझ ना केवल मनुष्य को परिक्रमा पूर्ण करने का महत्व समझाती है, बल्कि यह भी बताती है कि हमारे माता-पिता, जो कि ईश्वर के समान हैं उनकी परिक्रमा करने से ही हमें संसार का ज्ञान प्राप्त होता है।
इनकी भी होती है परिक्रमा
हिन्दू मान्यताओं के अनुसार केवल भगवान ही नहीं बल्कि और भी कई वस्तुओं की परिक्रमा की जाती है। ईश्वर के अलावा अग्नि, पेड़ तथा पौधों की परिक्रमा भी की जाती है। सबसे पवित्र माने जाने वाले तुलसी के पौधे की परिक्रमा करना हिन्दू धर्म में काफी प्रसिद्ध है।
मूर्ति, पेड़, पौधे
इसके अलावा पीपल के पेड़ और अग्नि की परिक्रमा भी की जाती है। अग्नि की परिक्रमा हिन्दू विवाह की एक अहम रीति है जिसमें भावी पति तथा पत्नी द्वारा विवाह संस्कार के दौरान एक-दूसरे से पावन रिश्ता जोड़ने के लिए हवन कुंड में जलती हुई अग्नि के सात फेरे लिए जाते हैं। फेरों में पति तथा पत्नी द्वारा जीवन भर साथ निभाने के वचन भी लिए जाते हैं।