kauwa ki kahani |
एक जंगल था , उसक Jungle में बहोत प्रकार के पक्षी प्राणी रहते थे। उसी जंगल में एक भोलू नामका कौआ (Kauwa) रहता था। भोलू बहोत होशियार था। सब लोग भोलू को होशियार भोलू के नामसे जानते थे।
गर्मियों के दिन थे। जंगल के तालाब का पानी सुख गया था। भोलू को बहोत प्यास लगी थी। प्यास के मरे उसका गाला सुख गया था। पानी की तलाश में भोलू एक गांव में पंहुचा। गांव के बहार एक घर था । घर मी कोई नही दिख राहा था । तभी भोलू कि नजर घर बाहर रखे मटके पे पड़ी। उम्मीद लिए भोलू मटके के पास आया। और देखा की मटके पिने के लिए पानी हे के नहीं। मटके में पानी था। भोलू ख़ुशी से फुला ना समाया | तुरंत उसने अपनी प्यास बुझानी की सोची और मटके में मुँह डाला। तभी एक समस्या आई मटके में पानी वो मटके की तली में था। जिसकी वजेसे भोलू कौवे की चोंच पानी तक नहीं पाउच पा रही थी | भोलू सोचने लगा की अब पानी को कैसे पिया जा सकता हे। तभी भोलू की नजर कंकड़ के ढेर पर पड़ी और उसे एक तरकीब सूझी। और उसने एक एक कंकड़ अपनी चोंच में उठाके मटके में डालना चालू किया। जैसे जैसे भोलू मटके में कंकड़ डाल रहा था वैसे वैसे मटके के अंदर का पानी ऊपर आ रहा था। फिर पानी ऊपर आने पर भोलू ने अपनी चोंच मटके में डाली और पानी पिया और अपनी प्यास बुझाई।
सही वक्त सही समजदारी हमेशा काम अति हे।