राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी का जीवन परिचय

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राष्ट्रपिता Mahatma Gandhi Biography जीवन परिचय |

 

Mahatma Gandhi Biography in Hindi

महात्मा गाँधी का जीवन परिचय (Mahatma Gandhi Biography in Hindi)

महात्मा गांधी भारतीय राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं,लेकिन उससे भी पहले पूरा देश उनको जिस सम्मान की दृष्टि से देखता हैं,वैसा सम्मान ना कभी किसी और व्यक्तित्व को मिला हैं ना आने वाली कई शताब्दियों तक मिलने की सम्भावना हैं. वास्तव में “राष्ट्रपिता” के सम्मान से सुशोभित महात्मा गाँधी देश की अमूल्य धरोहर में से एक हैं,क्योंकि उनका सम्मान और उनके विचारों का अनुगमन ना केवल भारतीय करते हैं बल्कि भारत के बाहर भी बहुत बड़ी संख्या में लोग गांधीजी के विचारों और कार्यों को सम्मान की दृष्टि से देखते हैं.

महात्मा गांधी: जन्म और परिवार (Mahatma Gandhi Birth and Family Details)

 

पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी
जन्म दिनांक 2 अक्तुंबर 1869
जन्मस्थान पोरबंदर (गुजरात)
पिता का नाम करमचंद
माता का नाम पुतली बाई
शिक्षा 1887 में मॅट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण। 1891 में इग्लंड में बॅरिस्टर बनकर
वो भारत लोटें।
विवाह – Wife कस्तूरबा – Kasturba Gandhi
बच्चों के नाम हरिलाल, मणिलाल, रामदास, देवदास
उपलब्धियां भारत के राष्ट्रपिता, भारत को आजाद दिलवाने में अहम योगदान,
सत्य और अहिंसा के प्रेरणा स्त्रोत,
भारत के स्वतंत्रा संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान भारत छोड़ो आंदोलन,
स्वदेशी आंदोलन, असहयोग आंदोलन स्वदेशी आंदोलन आदि।
महत्वपूर्ण कार्य सत्या और अहिंसा का महत्व बताकर इसको लोगों तक पहुंचाया,
छुआ-छूत जैसी बुराइयों को दूर किया

 

उस समय के चलन के अनुसार गांधी जी के पिता ने भी चार विवाह किए हुए थे.पेशे से दीवान करमचंद स्वयं भी नहीं जानते थे कि जब उनकी चौथी पत्नी अपनी सबसे छोटी संतान को जन्म देगी तो वह पुत्र भारत की स्वतंत्रता का प्रमुख पात्र बनेगा और इतिहास के पन्नों में स्वयं के साथ पूरे परिवार का नाम दर्ज करवाएगा.

गांधीजी की माताजी पुतलीबाई ने अपना सम्पूर्ण जीवन धार्मिक कार्यों में ही व्यतीत किया, उन्होंने कभी भौतिक जीवन में वस्तुओं को महत्व नहीं दिया. उनका ज्यादातर समय मंदिर में या घरेलू कार्यों में ही बीतता था.
वास्तव में वो परिवार को समर्पित आध्यात्मिक महिला थी, बीमार की सेवा करना,व्रत-उपवास करना जैसे काम उनके दैनिक जीवन में शामिल थे. इस तरह गांधीजी की परवरिश ऐसे माहौल में हुयी जहां पर वैष्णव मयी माहौल और जैन धर्म के मॉरल्स थे,इसी कारण वो शाकाहारी भोजन,अहिंसा,व्रत-उपवास की जीवन-शैली में विशवास करते थे,जिससे मन को शुद्ध किया जा सके.

महात्मा गांधी: प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा (Mahatma Gandhi: Early life and Education)

पोरबंदर में शिक्षा की पर्याप्त सुविधाएं नहीं होने के कारण मोहनदास ने अपनी प्राथमिक शिक्षा मुश्किल परिस्थितियों में पूरी की थी. उन्होंने मिट्टी में उंगलियों से उकेर कर वर्णमाला सीखी थी. बाद में किस्मत से उनके पिता को राजकोट में दीवानी मिल गई, जिससे उनकी समस्याएं काफी हद तक कम हो गई.

मोहनदास ने अपने स्कूल के दिनों में काफी इनाम जीते,उनके शिक्षा सम्बन्धित उपलब्ध रिकॉर्ड के अनुसार वो इंग्लिश में अच्छे थे, गणित में ठीक थे लेकिन जियोग्राफी में कमजोर थे, उनकी हैण्ड राइटिंग भी कुछ विशेष अच्छी नहीं थी.

1887 में गांधीजी ने यूनिवर्सिटी ऑफ़ बॉम्बे से मेट्रिक का एग्जाम पास किया और भावनगर का सामलदास कॉलेज जॉइन किया, जहां पर उन्होंने अपनी मातृभाषा गुजरती को छोडकर इंग्लिश सीखी,इसके कारण उन्हें लेक्चर समझने में परेशानी भी हुई.

इसी दौरान उनका परिवार उनके भविष्य को लेकर बहुत चिंतित था,क्योंकि वो डॉक्टर बनना चाहते थे,लेकिन वैष्णव परिवार से होने के कारण वो डॉक्टर का काम नहीं कर सकते थे, इसलिए उनके परिवार वालों को लगा की उन्हें अपने परिवार की परम्परा को निभाते हुए गुजरात के किसी हाई-ऑफिस में अधिकारी के पद पर लगना होगा, इसके लिए उन्हें बेरिस्टर बनना होगा. और उस समय मोहनदास भी सामलदास कॉलेज में खुश नहीं थे, वो ये सुनकर बहुत खुश हो गये. उस समय की उनकी युवावस्था ने भी उन्हें इंग्लैंड के कई सपने दिखाए, एक भूमि जहां पर बहुत से फिलोसोफर और पोएट्स होंगे, वो सिविलाइजेशन का केंद्र होगा. वैसे उनके पिता ने उनके लिए बहुत कम सम्पति और पैसे छोड़े थे, और उनकी माँ भी उन्हें विदेश भेजने से डर रही थी,लेकिन गांधीजी अपने निर्णय पर अडिग थे कि वो इंग्लैंड जायेंगे. उनके भाई ने आवश्यक पैसों का इंतजाम किया, और उन्होंने अपनी माँ को ये कहकर मनाया कि वो घर से दूर रहकर भी कभी शराब को हाथ नहीं लगायेंगे, किसी पर-स्त्री को नहीं देखेंगे, या मीट नहीं खायेंगे. हालांकि मोहनदास ने इस राह में आने वाली आखिरी बाधा मतलब शर्त को मानने से इनकार कर दिया था जिसके अनुसार वो समुन्द्र की यात्रा नहीं कर सकते थे और इस तरह सितम्बर 1888 को वो रवाना हो गए. वहाँ पर पहुचने के 10 दिनों बाद उन्होंने लंदन लॉ कॉलेज में से एक “इनर टेम्पल” को जॉइन कर लिया. मदन मोहन मालवीय के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े

गांधीजी का विवाह (Mahatama Gandhi’s Marriage details)

13 वर्ष में उनका विवाह हो गया था,इस कारण उन्होंने एक साल के लिए स्कूल छोड़ दिया था. गांधी का विवाह कस्तूरबा मकनजी से हुआ था. इनकी पत्नी एक व्यापारी की पुत्री थी.

गांधीजी का साउथ अफ्रीका का सफर (Gandhi in South Africa)

कुछ समय तक भारत में एक लॉयर के रूप में संघर्ष करने के बाद साउथ अफ्रीका में इन्हे लीगल सर्विस का एक साल का कॉन्ट्रैक्ट मिला था इस कारण अप्रैल 1893 में वो साउथ अफ़्रीकन स्टेट ऑफ़ नेटल के डरबन के लिए रवाना हो गए.
वहाँ उन्हें रंगभेद का सामना करना पडा,डरबन के कोर्ट रूम में उन्हें अपनी पगड़ी हटाने को कहा गया,जिससे उन्होंने मना कर दिया और उन्होंने कोर्ट रूम छोड़ दिया. नेटल एडवरटाइजर ने उनका प्रिंट (शायद कोई अख़बार में) में मजाक बनाया और लिखा “एन अनवेलकम विजिटर”.
7 जून 1893 को ट्रेन ट्रिप के दौरान उनके जीवन में एक घटना घटी जिसने उनकी जिन्दगी बदलकर रख दी. वो प्रेटोरिया जा रहे थे, तभी एक अंग्रेज ने उनके फर्स्ट क्लास रेलवे कम्पार्टमेंट में बैठने पर आपत्ति की, जबकि उनके पास टिकट था, उन्होंने ट्रेन से उतरने से मना कर दिया इसलिए उन्हें पिटरमार्टिजबर्ग (Pietermaritzburg) स्टेशन पर ट्रेन से नीचे फैंक दिया गया. उनका यह अपमान उन्हें अंदर तक प्रभावित कर गया और उन्होंने खुदको इस रंगभेद के विरुद्ध लड़ने के लिए तैयार किया. उन्होंने उस रात ये प्रतिज्ञा की वो इस समस्या को जड़ से समाप्त कर देंगे. इस तरह उस रात एक सामान्य आदमी से महानायक गांधी का जन्म हुआ. गांधी ने रंगभेद से लड़ने के लिये ही 1894 में नेटल इंडियन कांग्रेस की स्थापना की. एक साल के कॉन्ट्रैक्ट के बाद उन्होंने जब भारत लौटने की तैयारी शुरू की, उससे पहले नेटल लेजिसलेटिव असेम्बली ने भारतीयों को वोट देने से वंचित कर दीया. उनके साथियों ने भी उन्हें लेजिस्लेशन के खिलाफ लड़ाई जारी रखने के लिए आश्वस्त किया, इस तरह गांधीजि ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक इस मुद्दे को उठाया.

कुछ समय तक भारत में रहने के बाद गांधीजी अपने पत्नी और बच्चों के साथ साउथ अफ्रीका लौट गए, वहाँ उन्होंने लीगल प्रैक्टिस की. बोअर वॉर के दौरान उन्होंने साउथअफ्रीका में ब्रिटिश सरकार की मदद की थी,उनका मत था की यदि भारतीय ब्रिटिश एम्पायर में अपने मूलभूत नागरिक अधिकार चाहते हैं तो उन्हें अपने कर्तव्यों को भी पूरा करना होगा. सरोजिनी नायडू के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े
वास्तव में गांधीजी ने अपने जीवन में पहली बार साउथ अफ्रिका में ही नागरिक समानता के लिए रैली निकाली और अपने नॉन-वायलेंट प्रोटेस्ट को सत्याग्रह का नाम दिया, इस कारण वहाँ उन्हें कुछ समय के लिए जेल भी हुयी,उन्होंने कुछ परिस्थितयों में ब्रिटिश का सपोर्ट भी किया, बोएर वार (Boer War ) और ज़ुलु रिबेलियन(Zulu rebellion.) के लिए किए गए उनके प्रयासों के लिए ब्रिटिश सरकार ने उनकी अनुशंसा भी की.

सत्याग्रह,अहिंसात्मक और असहयोग आंदोलन (Satyagraha and Nonviolent Civil Disobedience)

1906 में गांधीजी ने अपने जीवन का पहला असहयोग आंदोलन किया था,जिसे उन्होंने सत्याग्रह का नाम दिया. ये असह्योग आंदोलन साउथ अफ्रीका के ट्रांसवाल गवर्नमेंट के भारतीयों पर लगाई जाने वाली पाबंदियों (जिनमे हिन्दू विवाह को नही मानना भी शामिल था) की प्रतिक्रिया में किया था. कई वर्षों तक ये संघर्ष चलने के बाद सरकार ने गाँधी के साथ कई भारतीयों को जेल में डाल दिया था. आखिर में दबाव के चलते साउथ अफ्रीका की सरकार ने गांधी और जनरल जेन क्रिश्चियन स्मट के मध्य हुए समझौते को स्वीकार कर लिया था जिसके अनुसार वहाँ पर हिन्दू विवाह को मान्यता भी मिली और भारतीयों के लिए पोल टैक्स को समाप्त किया गया. गांधीजी 1914 में जब भारत लौटे तब स्मट ने लिखा “संत ने हमारा साथ छोड़ दिया हैं,मैं हमेशा उनके लिए प्रार्थना करता हूँ”. इसके बाद विश्व युद्ध प्रथम के समय गांधीजी ने कुछ महीने लंदन में बिताये थे. लाला लाजपत राय के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े

महात्मा गाँधी का भारत की स्वतंत्रता के लिए योगदान (Mahatama Gandhi’s contributuion for Indian Freedom)

महात्मा गाँधी ने भारत के स्वतंत्रा के लिए बहुत संघर्ष किये। वह हमेशा शांति से आंदोलन करने पैर विश्वास करते थे। उन्होंने बहुत सारे आंदोलन किये जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत को हिला कर रख दिया.

A. चम्पारण और खेडा आंदोलन

1918 में गांधीजी ने ब्रिटिश लैंड लॉर्ड्स के खिलाफ चम्पारण आंदोलन का नेतृत्व किया था. उस समय अंग्रेजों द्वारा नील की खेती के संबंध में किसानों पर जो रुल्स लगाए जा रहे थे उससे व्यथित होकर आखिर में इन किसानों ने गांधीजी से सहायता मांगी जिसका परिणाम अहिंसक आंदोलन के रूप में हुआ,जिसमें जीत गांधीजी की हुई.
1918 में खेडा में जब बाढ़ आई तब वहाँ के किसानों को टैक्स में छूट की सख्त आवश्यकता थी. उस समय भी गांधीजी ने अहिंसक आंदोलन से अंग्रेजों तक अपनी बात पहुचाई,इस आंदोलन में भी गांधीजी को बहुत बड़ा जन-समर्थन मिला और अंतत: मई 1918 में सरकार ने टैक्स की राशि में छूट दी.

B. भारत में गांधीजी का पहला असहयोग आंदोलन

1919 में भारत पर जब ब्रिटिश का शासन था तब गांधीजी राजनैतिक आंदोलन कर रहे थे, उस समय ही एक अंग्रेजो द्वारा एक्ट रोलेट एक्ट लाया गया था जिसके अनुसार बिना किसी सुनवाई के क्रांतिकारियों को सजा दी जा सके,ऐसा प्रावधान अंग्रेजों ने बनाया था,गांधीजी ने इसका पूरजोर विरोध किया. उन्होंने इसके खिलाफ सत्याग्रह और शान्तिपूर्वक आंदोलन किये.
इसी दौरान अमृतसर में जलियांवाला बाग़ हत्याकांड भी हुआ जिसमें ब्रिटिश ब्रिगेडियर जनरल डायर ने सैकड़ो लोगों को गोलियों से भून दिया, गांधीजी इससे नाराज हो गए और उन्होंने वो मैडल लौटा दिए जो उन्होंने साउथ अफ्रीका में मिलट्री सर्विस के लिए जीते थे और उन्होंने ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीयों को वर्ल्ड वॉर में भाग लेने की अनिवार्यता का भी विरोध किया.
इस तरह गांधी इंडियन होम-रुल मूवमेंट का प्रमुख चेहरा बन गए,उन्होंने अंग्रेजों के सम्पूर्ण बहिष्कार का आह्वान किया, उन्होंने सरकारी अधिकारीयों को ब्रिटिश क्राउन के लिए काम बन्द करने के लिए प्रेरित किया,छात्रों को सरकारी स्कूलों में नहीं जाने के लिये,सैनिकों को अपना पद छोड़ने और नागरिकों को टैक्स ना भरने और ब्रिटिश सामान ना खरीदने के लिए भी प्रेरित किया. उन्होंने खुद भी ब्रिटिश द्वारा बनाये गए कपडे के स्थान पर चरखा चलाकर खादी का निर्माण करने पर ध्यान केन्द्रित किया. और यही चरखा जल्द ही भारतीय स्वतन्त्रता और स्वायत्तता का प्रतीक बन गया. गांधी ने इंडियन नेशनल कांग्रेस की लीडरशिप की और होम-रूल के लिए अहिंसा और असहयोग आंदोलन की नीव रखी

ब्रिटिश सरकार ने 1922 में गांधीजी पर राजद्रोह के 3 मुकदमे लगाकर उनको अरैस्ट कर लिया और 6 वर्ष के कारवास में डाल दिया. गांधीजी को उनकी अपेंडिक्स की सर्जरी के बाद फरवरी 1924 में छोड़ा गया. जब वो स्वतन्त्र हुए तो उन्होंने देखा कि भारत में हिन्दू-मुस्लिम एक दुसरे के खिलाफ खड़े हो चुके हैं. इसलिए उस साल उन्होंने 3 महीने के लिए उपवास किया, उसके बाद वो आगामी कुछ सालों तक राजनीति से दूर ही रहे.

C. खिलाफत आंदोलन

गांधीजी ने 1919 में मुस्लिमों के हितों के रक्षा की तरफ ध्यान दिया क्योंकि उन्हें लगा की कांग्रेस इस स्थिति में बहुत कमजोर हैं उस समय दुनिया भर में मुस्लिम खलीफा के विरुद्ध चले रहे संघर्ष के लिए खिलाफत आंदोलन शुरू किया गया था.
गांधीजी ने आल इंडिया मुस्लिम कांफ्रेंस में भाग लिया और इवेंट के मुख्य सदस्य बने. इस आंदोलन को मुस्लिमों का बहुत समर्थन मिला,और इस आंदोलन की सफलता ने उन्हें भारतीय राजनीती की मुख्यधारा में ना केवल स्थान दिया बल्कि कांग्रेस पार्टी में उनकी स्थिति और भी मजबूत हो गयी.

D. गाँधीजी और नमक सत्याग्रह

1930 में गांधी ने वापिस सक्रिय राजनीति में पदार्पण किया, और उन्होंने ब्रिटिश सरकार का नमक आंदोलन का विद्रोह किया,इस एक्ट के अनुसार भारतीय ना नमक बना सकते थे ना बेच सकते थे. और नमक पर कर भी लगा दिया गया था,जिसके कारण गरीब भारतीयों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था. गांधीजी ने इसका विरोध करने के लिए एक नये तरह का सत्याग्रह किया जिसमें वो 390 किलोमीटर/240 मील तक चलकर अरेबियन सागर तक गये, वहाँ पर उन्होंने प्रतीकात्मक रूप से नमक इकठ्ठा किया. इस मार्च से एक दिन पहले उन्होंने लार्ड इरविन को लिखा था “ मेरा उद्देश्य सिर्फ एक हैं कि मैं अहिंसात्मक तरीके से ब्रिटिश सरकार को ये महसूस करवाऊ कि वो भारतीयों के साथ कितना गलत कर रहे हैं”. 12 मार्च के दिन गांधीजी ने एक धोती और शाल पहनकर एक लकड़ी के सहारे साबरमती से ये मार्च को शुरू किया था जिसके 24 दिन बाद वो कोस्टल टाउन दांडी पहुंचे,और वहाँ उन्होंने वाष्पीकृत होने वाले समुंद्री जल से नमक बनाकर अंग्रेजों के बनाए नियम को तोडा. इस तरह इस नमक यात्रा से पूरे देश में क्रान्ति की लहर दौड़ पड़ी, लगभग 60,000 भारतीयों को साल्ट एक्ट तोड़ने के जुर्म में जेल में डाला गया,जिनमे गांधीजी खुद भी शामिल थे. वो इसके कारण भारत में ही नहीं दुनिया भर में प्रसिद्ध हो गयें और 1930 में ही टाइम मैगजीन ने उन्हें मैन ऑफ़ दी ईयर का ख़िताब दिया. जनवरी 1931 में उन्हे जेल से छोड़ा गया और इसके भी 2 महीने बाद उन्होंने लार्ड इरविन से समझौता किया और नमक सत्याग्रह समाप्त किया. इस समझौते के अनुसार हजारों राजनीतिक बंदियों को रिहा किया गया, इसके साथ ही ये उम्मीद भी जगी की स्वराज्य के लिए ये सत्याग्रह मील का पत्थर साबित होगा. गांधीजी ने 1931 में लन्दन में आयोजित राउंड टेबल कांफ्रेंस में इंडियन नेशनल कांग्रेस के मुख्य प्रतिनिधि के रूप में भाग लिया,हालाकिं ये कांफ्रेंस निर्थक सिद्ध हुयी,इसका उद्देश्य भारतीय संविधान में सुधार करना था.

D. भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement)

गांधी जब लंदन से लौटे तो 1932 में उन्हें वापिस जेल में डाल दिया गया उस समय भारत में एक नया वायसराय लार्ड विल्लिंगटन आया था,इसके बाद जब गांधीजी बाहर आए तो 1934 में उन्होने इंडियन नेशनल कांग्रेस की लीडरशिप छोड़ दी,और उनकी जगह जवाहर लाल नेहरु ने सम्भाली,और इस तरह गांधीजी फिर से राजनीति से दूर हो गए,उन्होंने अपना ध्यान शिक्षा,गरीबी और अन्य समस्याएं जो भारत के रुरल एरिया को प्रभावित कर रही थी पर लगाया.

1942 में द्वितीय विश्व युद्ध छिड गया,ग्रेट ब्रिटेन जब इस युद्ध में उलझा था तब गांधीजी ने भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत की. अगस्त 1942 में अंग्रेजो ने गांधी,उनकी पत्नी और इंडियन नेशनल कांग्रेस के अन्य नेताओं को गिफ्तार कर लिया, इन सबको पुणे के आगाखान पैलेस में रखा गया. 19 महिने के बाद गांधी को रिहा किया गया लेकिन उनकी पत्नी की मृत्यु जेल में हुई, फरवरी 1944 में उनकी पत्नी ने उनकी बांहों अंतिम श्वास ली.

1945 में जब ब्रिटिश के आम चुनाव में लेबर पार्टी ने चर्चिल के कंजर्वेटिव पार्टी को हरा दिया तब इंडियन नेशनल कांग्रेस और मुस्लिम लीग के मोहम्मद अली जिन्ना ने देश की स्वतंत्रता की मुहीम को और तेज कर दिया.जिसमें गांधीजी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई,लेकिन वो विभाजन को नहीं रोक सके, और धर्म के आधार पर भारत दो टुकड़ों भारत-पाकिस्तान में बंट गया. इस दौरान हिन्दू-मुस्लिम दंगे भडक गए, गांधीजी ने दंगा प्रभावित क्षेत्रं का दौरा किया और इस खून-खराबे को रोकने के लिए शान्ति की अपील की और व्रत भी किया. कुछ हिन्दुओं को लग रहा था कि गांधीजी का झुकाव मुस्लिम वर्ग की तरफ ज्यादा हैं.
गांधीजी से जुड़े रोचक तथ्य (Unknown and Interesting facts about Gandhi Ji)

शुरू में उन्होंने वकालत में अपनी जगह बनाने की कोशिशे शुरू की, अपने पहले कोर्ट केस में वो बहुत नर्वस थे. और जब गवाह के सामने उनके बोलने का समय आया तो वो ब्लेंक हो गये,और वो कोर्ट से बाहर आ गए,इस कारण उन्होंने अपने क्लाइंट को उसकी लीगल फीस भी लौटा दी.
गांधीजी को अब तक 5 बार नोबेल प्राइज के लिए नामांकित किया जा चूका है,और कमिटी इस बात के लिए अफ़सोस जता चुकी हैं,कि उन्हें अभी तक अवार्ड नहीं मिला हैं गाँधी 4 कॉन्टिनेंट और 12 देशों में सिविल राईट मूवमेंट के लिए जिम्मेदार थे.
उनके लिए विश्व-व्यापी सम्मान और उनकी अनुयायियों की संख्या का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता हैं कि महात्मा गांधी की शव यात्रा 8 किलोमीटर लम्बी थी. अपनी मृत्यु के एक दिन पहले वो कांग्रेस को समाप्त करने की सोच रहे थे.

महात्मा गांधी अपने पूरे जीवनकाल में प्रति दिन अठारह किलोमीटर पद यात्रा करते थे जो कि पूरी दुनिया के चक्कर 2 बार लगाने जितना हैं.महात्मा गांधी ने टॉलस्टॉय,आइन्स्टीन और हिटलर जैसी बड़ी हस्तियों से भी पत्र व्यवहार किया था.

स्टीव जॉब्स गांधीजी का बहुत बड़े फैन हैं,उनके राउंड ग्लासेस ना केवल गांधीजी के चश्मे के जैसे हैं बल्कि ये जॉब्स की गांधीजी को श्रद्धांजलि भी हैं.
गांधीजी के पास नकली दांत भी थे जिन्हें वो अपने कपड़ों में साथ लेकर घूमते थे.महत्मा गाँधी का पहला अंग्रेजी का टीचर आयरिश था,इसलिए वो आयरिश एसेंट में ही अंग्रेजी बोलते थे.
गांधीजी ने भारत में छूआछूत का विरोध किया उन्होंने शोषित वर्ग को हरिजन कहा जिसका मतलब होता हैं भगवान के पुत्र उन्होंने उनके साथ समान व्यवहार की सिफारिश की.
गांधीजी ने अपने जीवन के 5 वर्ष फ्रूट,नट्स और सीड्स पर बिताये थे,फिर गिरते स्वास्थ के कारण उन्होंने ये छोड़ दिया था.उन्होंने शुरू में दूध से बने खाद्य सामग्री को भी स्वीकार नहीं कीया था लेकिन बाद में खराब स्वास्थ के कारण बकरी का दूध पीना शुरू कर दिया था. वो कई बार अपनी बकरी को साथ लेकर यात्रा करते थे जिससे उन्हें ताजा दूध मिल सके और कोई उन्हें गाय या भैंस का दूध ना दे दे.
गवर्नमेंट ने न्यूट्रीशनिस्ट को ये बताने के लिए बुलाया गया था कि गांधीजी बिना भोजन के 21 दिन कैसे रह सकते हैं. गांधीजी जब भी उपवास करते थे तब उनकी फोटो नहीं ली जाती थी,क्योंकि इससे आम नागरिकों के उतेजित हो जाने का खतरा बना रहता था.
गांधी वास्तव में एक दार्शनिक एनार्किस्ट थे जो भारत में कोई भी सरकार स्थापित नहीं करना चाहते थे, उनका मानना था कि अगर हर कोई अहिंसा को अपनाता है तो देश स्व-शासित हो सकता हैं. जवाहर लाल नेहरू के बारे में जानने के लिए यहाँ पढ़े
गांधीजी की हत्या (Gandhi’s Assassination)

30 जनवरी 1948 के दिन 78 वर्षीय गांधी जो कि भूख हडताल से टूट चुके थे, उन्होंने नई दिल्ली के बिडला हाउस से प्रेयर मीटिंग के लिए प्रस्थान किया. उस समय एक व्यक्ति नाथूराम गोडसे जो कि गांधीजी के विभाजन पर रवैये और मुस्लिमों के प्रति सहिष्णुता से नाराज थे,उन्होंने महात्मा गांधी की सेमी-आटोमेटिक पिस्तौल से पॉइंट ब्लेंक रेंज में 3 बार गोली चलाकर हत्या कर दी. अहिंसा के पुजारी का हिंसा के साथ अंत होना पूरे देश के लिए दुखद समाचार लेकर आया,गोडसे और उनके साथी को इस जुर्म में नवम्बर 1949 में फांसी पर चढाया गया,और उनके साथ मिले अन्य साथियों को आजीवन कारवास का दंड सुनाया गया.

महात्मा गाँधी के नाम पर देश–विदेश में धरोहर

ग्रेट ब्रिटेन जहां उन्होंने देश के स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी थी,उस देश ने उनके देहांत के 21 वर्षों के बाद उनके नाम पर स्टाम्प ज़ारी किया था.
भारत में उनके नाम पर 53 प्रमुख रोड हैं जबकि भारत के बाहर 48 रोड उनके नाम पर हैं.इसके आलावा कई छोटे बड़े मार्गों के नाम भी महात्मा गाँधी के नाम पर हैं.
भारत में गांधीजी की याद में बहुत कुछ बनाया गया हैं,जिनमे एअरपोर्ट से लेकर सडक तक के नाम शामिल है,कॉलेज,यूनिवर्सिटी, अस्पताल तो लगभग हर शहर में मिल सकते हैं. फिर भी यदि कोई भारत में गांधीजी के जीवन-दर्शन करने चाहे तो निम्न जगहों के भ्रमण अवश्य करने चाहिए
दिल्ली में यमुना नदी के किनारे जहां पर गांधीजी का अंतिम संस्कार किया गया था,वही राज घाट पर ब्लैक मार्बल से गांधीजी की समाधि बनाई गयी हैं.
अहमदाबाद में साबरमती के किनारे भी गांधी आश्रम या साबरमती आश्रम हैं,इस आश्रम का उद्देश्य महत्मा गाँधी का जीवन चित्रित करना और उनके कार्यों को दिखाना हैं.
1963 में गांधी के सहयोगी और तत्कालीन भारत के प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने इस म्यूजियम की स्थापना की थी, यहाँ पर गांधीजी ने अपनी पत्नी के साथ 12 वर्ष बिताये थे. इसके अलावा पोरबंदर में उनके जन्मस्थान और घर को भी म्यूजियम बनाया गया हैं,वहाँ से कुछ दूरी पर ही कस्तूरबा के घर को भी स्मृति स्थल के रूप में संरक्षित किया गया.
गांधीजी के स्मृति में बचे उनकी कुछ वस्तुओं के अलावा वो कपडे भी है जो वें गोली लगने के समय पहने हुए थे,उन सबको गांधी म्यूजियम, मदुरै में सुरिक्षत रखा गया हैं.

गांधीजी के प्रेरक वचन (Gandhi’s quotes)

 

  • व्यक्ति अपने विचारों से निर्मित प्राणी है, वह जो सोचता है वही बन जाता है.

 

  • अपने प्रयोजन में दृढ विश्वास रखने वाला एक सूक्ष्म शरीर इतिहास के रुख को बदल सकता है.

 

  • हमेशा अपने विचारों, शब्दों और कर्म के पूर्ण सामंजस्य का लक्ष्य रखें. हमेशा अपने विचारों को शुद्ध करने का लक्ष्य रखें और सब कुछ ठीक हो जायेगा.

 

  • आँख के बदले में आँख पूरे विश्व को अंधा बना देगी.

 

  • थोडा सा अभ्यास बहुत सारे उपदेशों से बेहतर है.

 

  • खुदमें वो बदलाव करीए जो आप दुनिया में देखना चाहते हैं.

 

  • पहले वो आप पर ध्यान नहीं देंगे, फिर वो आप पर हँसेंगे, फिर वो आप से लड़ेंगे, और तब आप जीत जायेंगे.

 

  • जब तक गलती करने की स्वतंत्रता ना हो तब तक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं है.

 

  • ख़ुशी तब मिलेगी जब आप जो सोचते हैं, जो कहते हैं और जो करते हैं,इन सबमें सामंजस्य में हों.

आज हम आजाद भारत में सांस ले रहे हैं, वो इसलिए क्योंकि हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi ने अपने अथक प्रयासों के बल पर अंग्रेजो से भारत को आजाद कराया यही नहीं इस महापुरुष ने अपना पूरा जीवन राष्ट्रहित में लगा दिया। महात्मा गांधी की कुर्बानी की मिसाल आज भी दी जाती है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi के पास सत्य और अहिंसा दो हथियार थे जिन्होनें इसे भयावह और बेहद कठिन परिस्थितयों में अपनाया शांति के मार्ग पर चलकर इन्होनें न सिर्फ बड़े से बड़े आंदोलनों में आसानी से जीत हासिल की बल्कि बाकी लोगों के लिए प्रेरणा स्त्रोत भी बने।

महात्मा गांधी को राष्ट्रपिता और बापू जी के नामों से भी पुकारा जाता है। वे सादा जीवन, उच्च विचार की सोच वाली शख्सियत थे। उन्होंने अपना पूरा जीवन सदाचार में गुजारा और अपनी पूरी जिंदगी राष्ट्रहित में कुर्बान कर दी। उन्होनें अपने व्यक्तित्व का प्रभाव न सिर्फ भारत में ही बल्कि पूरी दुनिया में डाला।

महात्मा गांधी महानायक थे जिनके कार्यों की जितनी भी प्रशंसा की जाए उतनी कम है। Mahatma Gandhi- महात्मा गांधी कोई भी फॉर्मुला पहले खुद पर अपनाते थे और फिर अपनी गलतियों से सीख लेने की कोशिश करते थे।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी हमेशा कहते थे,

“बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो और बुरा मत कहो”

यानि की वे आदर्शों पर चलने वाले व्यक्ति थे और उनके जीवन के इन्हीं आदर्शों ने उन्हें राष्ट्रपित की संज्ञा दिलवाई।

महात्मा गांधी का प्रारंभिक जीवन – Early life of Mahatma Gandhi Information

महापुरुष महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को गुजरात के पोरबन्दर में हुआ था। उनके पिता करमचन्द गांधी राजकोट के ‘दीवान’ थे उनकी माता का नाम पुतलीबाई था जो कि धार्मिक विचारों वाली महिला थी और महात्मा गांधी पर भी उनके विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा।

महात्मा गांधी की शुरुआती शिक्षा राजकोट में हुई थी उन्होनें साल 1881 में 10th क्लास में एडमिशन लिया था। आपको बता दें कि गांधी जी जब महज 13 साल के थे तभी उनकी शादी कस्तूरबा से कर दी गई थी यानि की छोटी उम्र से ही गांधी जी ने अपनी जिम्मेदारियां उठानी शुरु कर दी थी लेकिन गांधी जी के कठोर दृढ़संकल्प ने उन्हें हमेशा आगे बढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया और उनकी परिवारिक जिंदगी उनकी पढ़ाई और उनके राष्ट्रहित के विचारों के कभी आड़े नहीं आई।

उन्होनें कभी अपने स्वार्थ की परवाह नहीं की और अपनी आगे की पढ़ाई शादी के बाद भी जारी रखी। महात्मा गांधी ने साल 1887 में मैट्रिक की परीक्षा पास की और भावनगर के सामलदास कॉलेज में एडमिशन लिया। लेकिन परिवार वालों के कहने पर उन्हें आगे की पढ़ाई के लिए इंग्लैण्ड जाना पड़ा। जहां उन्होनें अपनी वकालत की पढ़ाई पूरी की।

जब इंग्लेंड से वापस लौटे महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi Returned from England

साल 1891 में गांधी जी बरिस्ट्रर होकर भारत वापस लौटे इसी समय उन्होनें अपनी मां को भी खो दिया था लेकिन इस कठिन समय का भी गांधी जी ने हिम्मत से सामना किया और गांधी जी ने इसके बाद वकालत का काम शुरु किया लेकिन उन्हें इसमें कोई खास सफलता नहीं मिली।

गांधी जी की दक्षिण अफ्रीका की यात्रा – Mahatma Gandhi Visit to South Africa

Mahatma Gandhi – महात्मा गांधी जी को वकालत के दौरान दादा अब्दुल्ला एण्ड अब्दुल्ला नामक मुस्लिम व्यापारिक संस्था के मुकदमे के सिलसिले में दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। इस यात्रा में गांधी जी का भेदभाव और रंगभेद की भावना से सामना हुआ। आपको बता दें कि गांधी जी दक्षिण अफ्रीका पहुंचने वाले पहले भारतीय महामानव थे जिन्हें अपमानजनक तरीके से ट्रेन से बाहर उतार दिया गया। इसके साथ ही वहां की ब्रिटिश उनके साथ बहुत भेदभाव करती थी यहां उनके साथ अश्वेत नीति के तहत बेहद बुरा बर्ताव भी किया गया था।

जिसके बाद गांधी जी के सब्र की सीमा टूट गई और उन्होनें इस रंगभेद के खिलाफ संघर्ष का फैसला लिया।

जब गांधी जी ने रंगभेद के खिलाफ लिया संघर्ष का संकल्प –

रंगभेद के अत्याचारों के खिलाफ गांधी जी ने यहां रह रहे प्रवासी भारतीयों के साथ मिलकर 1894 में नटाल भारतीय कांग्रेस का गठन किया और इंडियन ओपिनियन अखबार निकालना शुरु किया।

इसके बाद 1906 में दक्षिण अफ्रीकी भारतीयों के लिए अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत की इस आंदोलन को सत्याग्रह का नाम दिया गया।

गांधी जी की दक्षिणा अफ्रीका से वापस भारत लौटने पर स्वागत – Mahatma Gandhi Return to India from South Africa

1915 में दक्षिण अफ्रीका में तमाम संघर्षों के बाद वे वापस भारत लौटे इस दौरान भारत अंग्रेजो की गुलामी का दंश सह रहा था। अंग्रेजों के अत्याचार से यहां की जनता गरीबी और भुखमरी से तड़प रही थी। यहां हो रहे अत्याचारों को देख गांधी – Mahatma Gandhi जी ने अंग्रेजी हुकुमत के खिलाफ जंग लड़ने का फैसला लिया और एक बार फिर कर्तव्यनिष्ठा के साथ वे स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े।

गांधी जी के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन – Mahatma Gandhi Aandolan

राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी का चंपारण और खेड़ा आंदोलन – Mahatma Gandhi Champaran and Kheda Andolan
चम्पारण और खेडा में जब अंग्रेज भारत पर शासन कर रहे थे। तब जमीदार किसानों से ज्यादा कर लेकर उनका शोषण कर रहे थे। ऐसे में यहां भूखमरी और गरीबी के हालात पैदा हो गए थे। जिसके बाद गांधी जी ने चंपारण के रहने वाले किसानों के हक के लिए आंदोलन किया और इस आंदोलन में किसानों को 25 फीसदी से धनराशि वापस दिलाने में कामयाब रही।

इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने अहिंसात्मक सत्याग्रह को अपना हथियार बनाया और वे जीत गए। इससे लोगों के बीच उनकी एक अलग छवि बन गई।

इसके बाद खेड़ा के किसानों पर अकाली का पहाड़ टूट पड़ा जिसके चलते किसान अपनों करों का भुगतान करने में असमर्थ थे। इस मामले को गांधी जी ने अंग्रेज सरकार के सामने रखा और गरीब किसानों का लगान माफ करने का प्रस्ताव रखा। जिसके बाद ब्रिटिश सरकार ने प्रखर और तेजस्वी गांधी जी का ये प्रस्ताव मान लिया और गरीब किसानों की लगान को माफ कर दिया।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी का खिलाफत आंदोलन (1919-1924) – Mahatma Gandhi Khilafat Andolan

गरीब, मजदूरों के बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी ने मुसलमानों द्दारा चलाए गए खिलाफत आंदोलन को भी समर्थन दिया था। ये आंदोलन तुर्की के खलीफा पद की दोबारा स्थापना करने के लिए चलाया गया था। इस आंदोलन के बाद गांधी जी ने हिंदू-मुस्लिम एकता का भरोसा भी जीत लिया था। वहीं ये आगे चलकर गांधी – Mahatma Gandhi जी के असहयोग आंदोलन की नींव बना।

महात्मा गांधी का असहयोग आंदोलन (1919-1920) – Mahatma Gandhi Asahyog Andolan

रोलेक्ट एक्ट के विरोध करने के लिए अमृतसर के जलियां वाला बाग में सभा के दौरान ब्रिटिश ऑफिस ने बिना वजह निर्दोष लोगों पर गोलियां चलवा दी जिसमें वहां मौजूद 1000 लोग मारे गए थे जबकि 2000 से ज्यादा लोग घायल हो गए थे। इस घटना से महात्मा गांधी को काफी आघात पहुंचा था जिसके बाद राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजीने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलकर आंदोलन करने का फैसला लिया था। इसके तहत गांधी जी ने ब्रिटिश भारत में राजनैतिक, समाजिक संस्थाओं का बहिष्कार करने की मांग की।

इस आंदोलन में महात्मा गांधी ने प्रस्ताव की रुप रेखा तैयार की वो इस प्रकार है –

सरकारी कॉलेजों का बहिष्कार

सरकारी अदालतों का बहिष्कार

विदेशी मॉल का बहिष्कार

1919 अधिनियम के तहत होने वाले चुनाव का बहिष्कार Mahatma Gandhi Biography

राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी का चौरी-चौरा काण्ड (1922) – Mahatma Gandhi Chauri Chaura Andolan

5 फरवरी को चौरा-चौरी गांव में कांग्रेस ने जुलूस निकाला था जिसमें हिंसा भड़क गई थी दरअसल इस जुलूस को पुलिस ने रोकने की कोशिश की थी लेकिन भीड़ बेकाबू होती जा रही थी। इसी दौरान प्रदर्शनकारियों ने एक थानेदार और 21 सिपाहियों को थाने में बंद कर आग लगा ली। इस आग में झुलसकर सभी लोगों की मौत हो गई थी इस घटना से महात्मा राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी – Mahatma Gandhi का ह्रद्य कांप उठा था। इसके बाद यंग इंडिया अखबार में उन्होनें लिखा था कि,

“आंदोलन को हिंसक होने से बचाने के लिए मै हर एक अपमान, यातनापूर्ण बहिष्कार, यहां तक की मौत भी सहने को तैयार हूं”

राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी का सविनय अवज्ञा आंदोलन/डंडी यात्रा/नमक आंदोलन (1930) – Mahatma Gandhi Savinay Avagya Andolan/ Dandi March / Namak Andolan

राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी ने ये आंदोलन ब्रिटिश सरकार के खिलाफ चलाया था इसके तहत ब्रिटिश सरकार ने जो भी नियम लागू किए थे उन्हें नहीं मानना का फैसला लिया गया था अथवा इन नियमों की खिलाफत करने का भी निर्णय लिया था। आपको बता दें कि ब्रिटिश सरकार ने नियम बनाया था की कोई अन्य व्यक्ति या फिर कंपनी नमक नहीं बनाएगी। Mahatma Gandhi Biography

12 मार्च 1930 को दांडी यात्रा द्धारा नमक बनाकर इस कानून को तोड़ दिया था उन्होनें दांडी नामक स्थान पर पहुंचकर नमक बनाया था और कानून की अवहेलना की थी।

Mahatma Gandhi – गांधी जी की दांडी यात्रा 12 मार्च 1930 से लेकर 6 अप्रैल 1930 तक चली। दांडी यात्रा साबरमति आश्रम से निकाली गई। वहीं इस आंदोलन को बढ़ते देख सरकार ने तत्कालीन वायसराय लॉर्ड इरविन को समझौते के लिए भेजा था जिसके बाद गांधी जी ने समझौता स्वीकार कर लिया था।

महात्मा गांधी का भारत छोड़ो आंदोलन- (1942) – Mahatma Gandhi Bharat Chhodo Andolan

ब्रिटिश शासन के खिलाफ महात्मा गांधी ने तीसरा सबसे बड़ा आंदोलन छेड़ा था। इस आंदोलन को ‘अंग्रेजों भारत छोड़ों’ का नाम दिया गया था।

हालांकि इस आंदोलन में गांधी जी को जेल भी जाना पड़ा था। लेकिन देश के युवा कार्यकर्ता हड़तालों और तोड़फोड़ के माध्यम से इस आंदोलन को चलाते रहे उस समय देश का बच्चा-बच्चा गुलाम भारत से परेशान हो चुका था और आजाद भारत में जीना चाहता था। हालांकि ये आंदोलन असफल रहा था।

महात्मा गांधी के आंदोलन के असफल होने की कुथ मुख्य वजह नीचे दी गई हैं –

ये आंदोलन एक साथ पूरे देश में शुरु नहीं किया गया। अलग-अलग तारीख में ये आंदोलन शुरु किया गया था जिससे इसका प्रभाव कम हो गया हालांकि इस आंदोलन में बड़े स्तर पर किसानों और विद्यार्थियों ने हिस्सा लिया था।

भारत छोड़ों आंदोलन में बहुत से भारतीय यह सोच रहे थे कि स्वतंत्रता संग्राम के बाद उन्हें आजादी मिल ही जाएगी इसलिए भी ये आंदोलन कमजोर पड़ गया।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी का भारत छोड़ो आंदोलन सफल जरूर नहीं हुआ था लेकिन इस आंदोलन ने ब्रिटिश शासकों को इस बात का एहसास जरूर दिला दिया था कि अब और भारत उनका शासन अब और नहीं चल पाएगा और उन्हें भारत छोड़ कर जाना ही होगा। Mahatma Gandhi Biography

Mahatma Gandhi- राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी जी के शांति और अहिंसा के मार्ग पर चलाए गए आंदोलनो ने गुलाम भारत को आजाद करवाने में अपनी महत्पूर्ण भूमिका निभाई है और हर किसी के जीवन में गहरा प्रभाव छोड़ा है।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी के आंदोलनों की खास बातें – Important things about Mahatma Gandhi’s movements

महात्मा गांधी -Mahatma Gandhi की तरफ से चलाए गए सभी आंदोलनों में कुछ चीजें एक सामान थी जो कि निम्न प्रकार हैं –

राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी जी के सभी आंदोलन शांति से चलाए गए।

आंदोलन के दौरान किसी की तरह की हिंसात्मक गतिविधि होने की वजह से ये आंदोलन रद्द कर दिए जाते थे।

आंदोलन सत्य और अहिंसा के बल पर चलाए जाते थे।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी की कुछ खास बातें – Some special things of Mahatma Gandhi

सादा जीवन, उच्च विचार –

राष्ट्रपति महात्मा गांधी – Mahatma Gandhi सादा जीवन उच्च विचार में भरोसा रखते थे उनके इसी स्वभाव की वजह से उन्हें ‘महात्मा’ कहकर बुलाते थे।

सत्य और अहिंसा –

राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी के जीवन के 2 हथियार थे सत्य और अहिंसा। इन्हीं के बल पर उन्होनें भारत को गुलामी से आजाद कराया और अंग्रेजो को भारत छोड़ने पर मजबूर किया।

छूआछूत को दूर करना था राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी का मकसद

Mahatma Gandhi – महात्मा गांधी का मुख्य उद्देश्य समाज में फैली छुआछूत जैसी कुरोतियों को दूर करना था इसके लिए उन्होनें काफी कोशिश की और पिछड़ी जातियों को उन्होनें ईश्वर के नाम पर हरि ‘जन’ नाम दिया।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधीजी जी की मृत्यु – Death of Mahatma Gandhi

नाथूराम गोडसे और उनके सहयोगी गोपालदास ने 30 जनवरी 1948 को बिरला हाउस में गांधी जी की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

हमें आशा हे की आपको हमारा ये आर्टिकल Mahatma Gandhi Biography बारे में पसंद आया होगा

पढ़िए और यहाँ क्या कहते हे प्रसिद्ध हस्तिया

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