दन्त परी – Tooth Fairy(dant pari)

दन्त परी – Tooth Fairy

 

दन्त परी – Tooth Fairy घर का सारा काम निबटा कर मैं लेटी ही थी कि मेरी बेटी मुनमुन रोती चिल्लाती मेरे कमरे में भागी आयी। मैं भी हड़बड़ा कर उठी और उसे गोद में उठा सीने से चिपका कर पुछा दन्त परी – Tooth Fairy
” क्या हुआ मुनमुन, रो क्यों रही हो।”

उसको चुप कराने के चक्कर में ये भी न देखा कि उसके मुँह से खून निकल रहा था। मैं पहले तो घबरा गयी, लेकिन अपनी घबराहट छुपाते हुए उसे मुँह खोलने को कहा। मुँह खुलते ही चैन की सांस ली और थोड़ा मुस्कराते हुए उसे समझाया ” अरे, पगली कुछ नहीं हुआ। सिर्फ दूध का दाँत टूट गया है, कुछ दिनों में दूसरा और बहुत ही मजबूत दाँत निकल आएगा।” मगर मुनमुन थी कि रोए ही जा रही थी ” मेरा आगे का दाँत टूट गया, अब सब मुझे चिढ़ाएँगे।” उसकी बात भी सही थी, बच्चों को तो बस एक बहाना भर चाहिए किसी को चिढ़ाने का। उनका दिन तो उस मस्ती में ही गुजर जाता है। कोई द्वेष नहीं, कोई खराब मंशा नहीं बस जी भर कर हँसने का मौका मिल जाता है।

दन्त परी – Tooth Fairy

उसे चुप करवाने के लिए मैंने उसे Tooth Fairy (दन्त पारी) के बारे में भी बताया। ” देखो, अब तुम इस दाँत को धो कर अपने तकिये के नीचे रख कर सो जाओ। जब सुबह उठोगी तो दन्त परी तुम्हे एक गिफ्ट देगी।” बस फिर क्या था, गिफ्ट मिलने के सोच ने ही उसका रोना बंद कर दिया। दिन में ना जाने कितनो बार उसने पूछा ” मुम्मा, tooth fairy मुझे क्या गिफ्ट देंगी।” और में हँसते हुए उसे इंतज़ार करने को कह देती।

अगली सुबह मुनमुन जल्दी से उठी और दौड़ी हुई मेरे पास आयी ” मुम्मा, tooth fairy मेरे लिए क्या गिफ्ट लायी।” और मैंने उसे गिफ्ट को तकिये के नीचे ढूंढ़ने को कहा। इतना सुनते ही तेजी से भागी अपने कमरे की तरफ और तकिया उठा के देखा तो वहाँ 100 रूपए का नोट पड़ा था।

मायूस सी हो बोली ” मुम्मा, यहाँ तो कोई भी गिफ्ट नहीं है, बस एक नोट पड़ा है।” तब मैंने उसके हाथ में 100 रूपए का नोट दे समझाया कि अब वह इन 100 रुपयों से अपनी मन पसंद गिफ्ट खरीद सकती है। मायूस चेहरे पर एकदम से ख़ुशी की लहर दौड़ पड़ी। शाम को उसे बाजार ले जाकर मैंने उसकी मन पसंद गिफ्ट उसे ले दिया।
लेकिन झेलना तो था ही मुनमुन को। मैंने उसे समझाया ” देखो मुनमुन, तुम शायद भूल गयी हो कि तुमने भी अपने साथियों के साथ मिल किसी और के दाँत टूटने का मजाक बनाया होगा। आज तुम्हारी बारी है मजाक बनने की तो इसमें तुम्हे बुरा नहीं मानना चाहिए।”

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यही तो है बचपन की मस्ती, खेलो कूदो और हँसते हँसाते एक दुसरे के साथ मिलजुल कर रहो। इन छोटी बातों को चिढ़ाना नहीं बल्कि सब तरफ हँसी बिखेरने की तरह समझो।
याद रखो, ये बचपन के पल दुबारा लौट के नहीं आते। बस इसी तरह ख़ुशी ख़ुशी तुम भी उस हँसी में शामिल हो जाओ।

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